मीठी लौकी का रस “बाबा-रामदेव” ह्वदय रोगियों को नियमित रूप से पीने की सिफारिश करते हैं , पर कड़वी तुंबी या लौकी केवल औष्ाधि प्रयोगों में ही काम आती है।
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टारपिडो लगने से जैसे जहाज का मल्लाह चौंक उठता है , वैसे ही कुछ क्षण को तो हृदय-वीणा के तार ऐसे झनझना उठते हैं जैसे उसकी तुंबी पर पत्थर पड़े हों।
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प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठकर तुंबी ( लौकी) को सिर से घुमाने के बाद स्नाना करने से रूप और सौंदर्य बना रहता है तथा लोग नरकगामी होने से भी बच जाते हैं।
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लौकी की बेल गुणधर्म व मात्रा कड़वी तुंबी स्वाद में बहुत कड़वी , इसका विपाक भी तिक्त (कडुवा) वायु, पित्त, ज्वर, विष्ा, शोथ, व्रण व कास में उपयोगी, वमन और विरेचन कारक है।
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मीठी और कड़वी दोनों तुंबी के पत्ते पंचकोण आकृति के छह इंच व्यास के , नर पुष्प लगभग छह इंच तक बड़े, मादा पुष्प मात्र एक इंच बड़े सफेद रंग के होते हैं।
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कई बार जाने अनजाने में हुई चीजें बहुत बड़ी बन जाती हैं ऐसा ही कुछ आठवीं क्लास में पढ़ने वाले हैदारबाद के मोहम्मद शाहबाज तुंबी और बी . मनोज के साथ हुआ।
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प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठकर तुंबी ( लौकी ) को सिर से घुमाने के बाद स्नान करने से रूप और सौंदर्य बना रहता है तथा लोग नरकगामी होने से भी बच जाते हैं।
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तत वाद्यों के ढाँचे लकड़ी के बनतेथे जिसमें तुंबी बनायी जाती अथवा सारंगी जैसे वाद्यों पर चमड़ा मढ़ाजाता , सरोद जैसे वाद्यों पर स्टील प्लेट लगायी जाने लगी, दूर्बा तथा मूँजके तारों का स्थान धातु लोह, पीतल, ताँबे, के तारों ने ले लिया.
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०४- लैपटाप जोगियों की तुंबी में समा जाया करता था पूरा त्रिलोक जल की एक बूँद में बिला जाया करते थे वॄहदाकार भूधर भँवरे की एक गूँज हिलाकर रख देती थी समूचा भुवन ये सब बहुत दूर की कौड़ियाँ नहीं हैं समय के पाँसे पर अभी भी अमिट है उनकी छाप .
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० ४ - लैपटाप जोगियों की तुंबी में समा जाया करता था पूरा त्रिलोक जल की एक बूँद में बिला जाया करते थे वॄहदाकार भूधर भँवरे की एक गूँज हिलाकर रख देती थी समूचा भुवन ये सब बहुत दूर की कौड़ियाँ नहीं हैं समय के पाँसे पर अभी भी अमिट है उनकी छा प .