| 21. | ( 2) रोमक प्रवर्ध - लेंस परिसर के चारों ओर झालर की भांति स्थित होता है;
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| 22. | वृन्त तथा फलक के मिलन स्थलों से दोनों ओर एक-एक अनुप्रस्थ प्रवर्ध निकले होते हैं।
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| 23. | ऊपर कोमल तालु के बीच में मांस का एक तिकोना प्रवर्ध लटकता हुआ दिखाई पड़ता है।
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| 24. | इसके वाम और पुच्छिल खंड का नुकीला भाग अंकुरक प्रवर्ध कहलाता ( Papillary process ) हैं।
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| 25. | ऊपर कोमल तालु के बीच में मांस का एक तिकोना प्रवर्ध लटकता हुआ दिखाई पड़ता है।
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| 26. | से जुड़ जाते हैं , और प्रवर्ध के एक्टिन तंतु कोशिका को साथ खींच ले जाते हैं.
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| 27. | अधिकांश जातियों में मुख के चारों ओर खोखले या ठोस , अंगुली जैसे प्रवर्ध अथवा स्पर्शिकाएँ होती हैं।
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| 28. | नेत्रोद का निर्माण संभवत : रोमक प्रवर्ध की कोशिकाओं से प्राप्त स्फाटकल्पयुक्त तरल के अपोहन से होता है।
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| 29. | इसी ओर से इसमें कुछ प्रवर्ध निकलते हैं , जो मध्यश्लेष के ऊपर फैलकर पूरा स्तर बना लेते हैं।
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| 30. | फलकों के मिलन स्थल से एक कंटिकीय प्रवर्ध पीछे की ओर तिरछा नीचे की ओर झुका होता है।
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