ब्रह्राजी ने बताया कि मनुष्य पिता , पितामह , और प्रपितामह के उददेश्य से तथा मातामह , प्रमातामह , और वृदुप्रमातामह के श्राद्ध-तर्पण करेंगे तो उससे सभी पितर तृप्त होंगे।
22.
फिर मेरे मातामह राय खिरोधरलाल ने बहादुरशाह के काल के आरम्भ तक शेष वृत्त संग्रह किया . ‘‘ ग़ौरतलब यह है कि ‘ जामें जम ‘ में तैमूर पर विस्तार से लिखा गया है .
23.
भारत मानव वंश का उद् गम , अनेक भाषाओं तथा बोलियों की जन्म-स्थली , इतिहास की माता , पौराणिक एवं अपूर्व कथाओं की मातामह ( दादी ) और अनेक परम्पराओं की प्रमातामह ( परदादी ) है।
24.
यदि मनुष्य पिता , पितामह और प्रपितामह के उद्देश्य से तथा मातामह, प्रमातामह और वृद्धप्रमातामह के उद्देश्य से श्राद्ध तर्पण करेंगे तो उतने से ही उनके पिता और माता से लेकर दिव्य पितरों तक सभी पितर तृप्त हो जायेंगे।
25.
अनेक स्थलां पर मानसि रोगियों के परीक्षण से स्पष्ट रूप से पता लगता है कि अधिकांश रोगियों में उनके काई न कोई पूर्वज , माता या पिता, मातामह या पितामह, या अन्य दूर के पूर्वज, मानसिक रोग से आक्रांत थे।
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अनेक स्थलां पर मानसि रोगियों के परीक्षण से स्पष्ट रूप से पता लगता है कि अधिकांश रोगियों में उनके काई न कोई पूर्वज , माता या पिता, मातामह या पितामह, या अन्य दूर के पूर्वज, मानसिक रोग से आक्रांत थे।
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अनेक स्थलां पर मानसि रोगियों के परीक्षण से स्पष्ट रूप से पता लगता है कि अधिकांश रोगियों में उनके काई न कोई पूर्वज , माता या पिता , मातामह या पितामह , या अन्य दूर के पूर्वज , मानसिक रोग से आक्रांत थे।
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अनेक स्थलां पर मानसि रोगियों के परीक्षण से स्पष्ट रूप से पता लगता है कि अधिकांश रोगियों में उनके काई न कोई पूर्वज , माता या पिता , मातामह या पितामह , या अन्य दूर के पूर्वज , मानसिक रोग से आक्रांत थे।
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हिंदू धर्म की पुरातन परंपरराओं में आस्था रखने वाले लोग इस पितृपक्ष में अपने स्वर्गीय पिता , पितामह , प्रपितामह , माता , मातामह आदि पितरों को श्रद्धा तथा भक्ति सहित पिंडदान देते हैं और उनकी तृप्ति हेतु तिलांजलि सहित तर्पण भी करते हैं।
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हिंदू धर्म की पुरातन परंपरराओं में आस्था रखने वाले लोग इस पितृपक्ष में अपने स्वर्गीय पिता , पितामह , प्रपितामह , माता , मातामह आदि पितरों को श्रद्धा तथा भक्ति सहित पिंडदान देते हैं और उनकी तृप्ति हेतु तिलांजलि सहित तर्पण भी करते हैं।