स्वयं अपने क्षेत्र की भाषाओं की जिन्हें कि माता , मातामही , पितामही जैसा सम्मान मिलना चाहिये , जो अब भी ऊर्जावान , जीवंत और अधिक व्यवहार में हैं , जिन्हें लोक जिह्वा पर हमेशा जीवित रहना है , जिन्हें उसके लिये सरकारी सहयोग की बैसाखी की आवश्यकता नहीं है और जो वाकई बहता नीर हैं ; कितनी उपेक्षा हो रही है !
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जिस माता , पिता , दादा , दादी , प्रपितामह , मातामही एवं अन्य बुजुर्गों के लाड , प्यार , श्रम से कमाएं धन एवं इज्जत के सहारे आप सुखपूर्वक रहते हैं , तो आज जब उनका शरीर पांच तत्व में विलीन हो गया है तो आपका यह परम कर्तव्य बनता है कि अपने पितरों के लिए कम से कम और कुछ नहीं कर सकते तो तर्पण तो कर दें।
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जिस माता , पिता , दादा , दादी , प्रपितामह , मातामही एवं अन्य बुजुर्गों के लाड , प्यार , श्रम से कमाएं धन एवं इज्जत के सहारे आप सुखपूर्वक रहते हैं , तो आज जब उनका शरीर पांच तत्व में विलीन हो गया है तो आपका यह परम कर्तव्य बनता है कि अपने पितरों के लिए कम से कम और कुछ नहीं कर सकते तो तर्पण तो कर दें।