इतनी ठसक है कि बहुत बार भाव को स्थानच्युत और ठरका देता है लेकिन समझते ही कितने हैं ? आक्रामकता को दर्शाते और सराहते हुये प्रतिष्ठा का मूल स्थान ही खिसक जाता है।
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इस अमानवीयता को स्वीकार करके , अर्थात उस सीमा तक स्वयं स्थानच्युत हो कर ही लेखक इस प्रश्न का उत्तर पा सकता है कि वह किसके बारे में लिखे , किसके लिए लिखे .
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पुराने अर्थ मिटते , बदलते या स्थानच्युत नहीं होते , पर कविता रूपी नई सृष्टि में उतना ही , वहीं , तभी और उसी मात्रा में खुलते , ध्वनित और स्वरित होते हैं जितना कवि नई व्यवस्था में चाहता है।
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प्रणोदित्र घूमते समय जब पानी को चीरकर जहाज को आगे की तरफ ढकेलता है , उस समय उसकी प्रतिक्रिया के रूप में उसी परिमाण का नोद आगे की तरफ मुड़ता है, जिससे बेयरिंगों (bearings) के बहुत ही शीघ्र घिस जाने तथा पुर्जों के स्थानच्युत हो जाने का डर रहता है।
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बहुत ही सार्थक लेख . ..आपने सभी पहलुओं पर बहुत अच्छी तरह प्रकाश डाला....यही डर, इन दोनों यादव नेताओं को सता रहा है...ये नहीं सोचते...कि केवल उच्च वर्ग की महिलायें ही क्यूँ...कालान्तर में हर तबके की महिला आगे आएगी और इस दुनिया की तस्वीर ही बदल जाएगी...पर इन्हें वह बदली हुई तस्वीर नहीं चाहिए....डर है वे हाशिये पर ना आजायें...इतना आत्मविश्वास तो उनमे होना चाहिए...कि उन्हें कोई स्थानच्युत ना करा पाए...पर इसके लिए सत्कार्य करने होंगे ना..जिस से इन्हें परहेज़ है.
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क्या हैं लक्ष ण * पेडू में लगातार भारीपन का एहसास * बार-बार मूत्रत्याग करना * मूत्र को रोक न पाना * जब चाहते हों तब मूत्र त्याग न कर पाना * पीठ के निचले हिस्से में लगातार दर्द रहना * यौन संबंधी समस्याएँ होना * अप्रशिक्षित दाई से डिलेवरी करा लेना * यौन संबंध स्थापित करने में कठिनाई होना क्या हैं बचाव के उपा य * 40 साल की उम्र के बाद हर महिला को गर्भाशय के स्थानच्युत हो सकने के जोखिम की जानकारी होना चाहिए।