भास्कराचार्य की ‘ लीलावती ‘ में यह बताया गया है कि किसी वृत्त में बने समचतुर्भुज , पंचभुज , षड्भुज , अष्टभुज आदि की एक भुजा उस वृत्त के व्यास के एक निश्चित अनुपात में होती है।
32.
यज्ञ की वेदियों में त्रिभुज , चतुर्भुज जिसमें वर्ग तथा आयत दोनों ही होते थे, षट्भुज, अष्टभुज, वृत आदि रेखागणितीय आकार सम्मिलित रहते थे तथा उन रेखागणितीय आकृतियों के क्षेत्रफल भी पूर्वनिर्धारित तथा निश्चित अनुपात में हुआ करते थे।
33.
यज्ञ की वेदियों में त्रिभुज , चतुर्भुज जिसमें वर्ग तथा आयत दोनों ही होते थे , षट्भुज , अष्टभुज , वृत आदि रेखागणितीय आकार सम्मिलित रहते थे तथा उन रेखागणितीय आकृतियों के क्षेत्रफल भी पूर्वनिर्धारित तथा निश्चित अनुपात में हुआ करते थे।
34.
यज्ञ की वेदियों में त्रिभुज , चतुर्भुज जिसमें वर्ग तथा आयत दोनों ही होते थे , षट्भुज , अष्टभुज , वृत आदि रेखागणितीय आकार सम्मिलित रहते थे तथा उन रेखागणितीय आकृतियों के क्षेत्रफल भी पूर्वनिर्धारित तथा निश्चित अनुपात में हुआ करते थे।
35.
इसी प्रकार से विभिन्न यज्ञों के लिए वेदियों का त्रिभुज , चतुर्भुज , षट्भुज , अष्टभुज , वृताकार आदि विभिन्न आकार में बनाने का विधान था जिसके लिए अंकगणित ( arithmetic ) , बीजगणित ( algebra ) , ज्यामिति ( geometry ) , त्रिकोणमिति ( trignometry ) आदि का ज्ञान होना अत्यावश्यक था।
36.
इसी प्रकार से विभिन्न यज्ञों के लिए वेदियों का त्रिभुज , चतुर्भुज , षट्भुज , अष्टभुज , वृताकार आदि विभिन्न आकार में बनाने का विधान था जिसके लिए अंकगणित ( arithmetic ) , बीजगणित ( algebra ) , ज्यामिति ( geometry ) , त्रिकोणमिति ( trignometry ) आदि का ज्ञान होना अत्यावश्यक था।
37.
मुनि पुत्र ने अपने पिता के चरणों में प्रणाम कर के गंगा तट पर जा कर वाह परम प्रभु गणेश जी ध्यान करते हुए भक्तिपूर्वक उनके मन्त्र का जप करने लगा | वह बालक निराहार रहकर एक सहस्त्र वर्ष तक गणेश जी के ध्यान के साथ उनका मन्त्र जपता रहा | माघ कृष्ण चतुर्थी को चन्द्रोदय होने पर दिव्य वस्त्रधारी अष्टभुज चन्द्रभाल प्रसन्न होकर प्रकट हुए | वे विविध अलंकारों से विभूषित अनेक सूर्यों से भी अधिक दीप्तिमान थे |