| 31. | कोयल , खड़े पेड़ की देह - केदारनाथ अग्रवाल
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| 32. | तेरे मेरे मन उपवन में , तान बसंती कोयल छेड़े
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| 33. | कोयल की कूक से बाग-बगीचे बौरा जाते हैं।
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| 34. | कोयल बड़े मजे से अंडों को सेती है।
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| 35. | पीले-पीले पत्तों में कोयल ने आना छोड़ दिया
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| 36. | वो सावन के झूले , वो कोयल की कूक,
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| 37. | आज फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?
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| 38. | झरे सब पीले पात , कोयल की कुहुक रात
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| 39. | झरे सब पीले पात , कोयल की कुहुक रात
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| 40. | कोयल कूकती है ज़रूर सुनते रहते हैं . .
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