अजीब बात यह है कि जब स्त्री को उसके सामान्य मानवीय अधिकार दिलाने और खुली प्राणवायु में मानुषी की तरह सांस लेने की बात उठती है तो लोग जानबूझ कर व खींच खाँच कर इसे स्वछंदता और यौनमुक्ति का रूप दे देते हैं क्योंकि वैसा करके स्त्री को बंद रखने का अधिकार जो मिल जाता है !