| 31. | के शुद्ध स्वरूप की नित्यता , अखंडता और व्यापकता का आभास देती है।
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| 32. | न्यायमत में आत्मा की अनेकता , विभुता तथा नित्यता मानी गयी है।
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| 33. | भावना आत्मा के शुद्ध स्वरूप की नित्यता , अखंडता और व्यापकता का आभास देती
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| 34. | दूसरे शब्दों में नित्यता , अमरत्व , सभी का मूल आधार वृत्त है।
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| 35. | विषय रूप में अनुभव , जगत् की अनन्तता और नित्यता का आभास देते हैं।
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| 36. | बाह्य जगत् की नित्यता का अटूट सम्बन्ध अन्तर्जगत् की नित्यता से है ।
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| 37. | बाह्य जगत् की नित्यता का अटूट सम्बन्ध अन्तर्जगत् की नित्यता से है ।
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| 38. | बाह्य जगत् की नित्यता का अटूट सम्बन्ध अन्तर्जगत् की नित्यता से है ।
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| 39. | बाह्य जगत् की नित्यता का अटूट सम्बन्ध अन्तर्जगत् की नित्यता से है ।
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| 40. | नित्य : अजन्मा, अजरता, अमरता आदि से आत्मा की नित्यता सिद्ध होती है ।
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