मिताक्षरा तथा दायभाग दोनों ने पांच स्त्रियों अर्थात् विधवा , पुत्री , माता , पितामही और प्रपितामही को दाय योग्य माना है किन्तु इन दोनों में भी वारिसों के उत्तराधिकार क्रम के बारे में मतभेद रहा।
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यह संभव है कि अपनी विनम्र , उदार भावना के कारण उन्होंने सभी सम्प्रदायों की सत्संगति की होगी और बहुत संभव है कि अपनी पितामही सास झाली रानी के पास आने वाले रैदास के शिष्यों से वे प्रभावित हुई हों ।
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इसीलिए कवि बालक के जन्म से लेकर उसके पितामही जीवन तक सारा मनस्तत्त्व बड़ी सूक्ष्म और पैनी दृष्टि से पकड़ता है और वर्द्धमान जीवन चेतना के उस धाराप्रवाह को रूपायित करता है , जो विविध जीवनस्थितियों में अंतरंगी मणिसूत्र की तरह पिरोया हुआ है।
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स्वयं अपने क्षेत्र की भाषाओं की जिन्हें कि माता , मातामही, पितामही जैसा सम्मान मिलना चाहिये, जो अब भी ऊर्जावान, जीवंत और अधिक व्यवहार में हैं, जिन्हें लोक जिह्वा पर हमेशा जीवित रहना है, जिन्हें उसके लिये सरकारी सहयोग की बैसाखी की आवश्यकता नहीं है और जो वाकई बहता नीर हैं;
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कैलाश खेर - नैहरवा मेरी दादी के लिये , , निश्च्छल सरल मधुर अविकल , पितामही तू सतत अविचल , स्नेहसिग्ध प्रतिमूर्त्ति रूप, मम प्राणमयी तू मातृ रूप, कर उर प्रकाशित दे ज्ञान धूप, मम पितु जननी तू देवि रूप मम पितु जननी तू देवि रूप मम पितु जननी तू देवि रूप वो लम्हे ...
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कैलाश खेर - नैहरवा मेरी दादी के लिये , , निश्च्छल सरल मधुर अविकल , पितामही तू सतत अविचल , स्नेहसिग्ध प्रतिमूर्त्ति रूप, मम प्राणमयी तू मातृ रूप, कर उर प्रकाशित दे ज्ञान धूप, मम पितु जननी तू देवि रूप मम पितु जननी तू देवि रूप मम पितु जननी तू देवि रूप वो लम्हे ...
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किसी को कष्ट नहीं हुआ उनकी असह्य पीड़ा से . ' सूर्य की माता अदिति , उनकी पितामही ने कवच-कुंडल प्रदान किये थे , इन्द्र ने अपने पुत्र की रक्षा के लिये उतरवा लिये ' -कृष्ण ने बताया . अर्जुन व्याकुल हो उठे . ' नहीं , मैं नहीं क्षमा कर सकता अपने आप को .
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स्त्री वर्ग में भी कौन २ गुरु हैं - इसकी भी परिगणना की गयी है - नानी , मामी , मौसी , सास , दादी , अपने से बड़ी जो भी हो , तथा जो पालन करने वाली है ! देखें - मातामही मातुलानी तथा मातुश्च सोदरा ! श्वश्रूः पितामही ज्येष्ठा धात्री च गुरवः स्त्रीषु !!
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स्वयं अपने क्षेत्र की भाषाओं की जिन्हें कि माता , मातामही , पितामही जैसा सम्मान मिलना चाहिये , जो अब भी ऊर्जावान , जीवंत और अधिक व्यवहार में हैं , जिन्हें लोक जिह्वा पर हमेशा जीवित रहना है , जिन्हें उसके लिये सरकारी सहयोग की बैसाखी की आवश्यकता नहीं है और जो वाकई बहता नीर हैं ; कितनी उपेक्षा हो रही है !
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स्वयं अपने क्षेत्र की भाषाओं की जिन्हें कि माता , मातामही , पितामही जैसा सम्मान मिलना चाहिये , जो अब भी ऊर्जावान , जीवंत और अधिक व्यवहार में हैं , जिन्हें लोक जिह्वा पर हमेशा जीवित रहना है , जिन्हें उसके लिये सरकारी सहयोग की बैसाखी की आवश्यकता नहीं है और जो वाकई बहता नीर हैं ; कितनी उपेक्षा हो रही है !