ऐसे सभी लोग यदि अपनी-अपनी भाषाएं , संस्कृति , राष्ट्रीयता और स्वाभिमान लेकर विदेश जाएं , वहां अपनी भाषा का विरवा रोपें , उसे सींचे , छतनार करें , तो एक दिन पाएंगे कि उसकी शीतल छांह में न केवल वे चैन-सुकून अनुभव कर रहे हैं वरन् उनके अनेक प्रतिवेशी और विदेशी इष्ट मित्र भी भारत की पावन भूमि का , यहां की गंगा-यमुना-सरस्वती का , यहां की नर्मदा-गोदावरी-कृष्णा-कावेरी का भी स्पर्श अनुभव करेंगे।
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जीवन स्तर इनका किसी भी विकसित देश के समकक्ष माना जायेगा और आधुनिकता की हवा का पश्चिम में लहराना तो स्वाभाविक है ही फिर भी भारत वंशी अपने मूल्यों की महत्ता को जानते हैं और वे अपने पुरखों की विरासत को भुलाकर एक बहुमूल्य निधि से वंचित होना नहीं चाहते और इसी उद्देश्य को लेकर इस देश की संस्था हिंदी निधि ने यह अन्तरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन आयोजित किया और इसमें भाग लेने भारत से पाँच तथा यूरोप , अमरीका, दक्षिण पूर्व एशिया एवं प्रतिवेशी देशों से अनेक विद्वान आए ।
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जीवन स्तर इनका किसी भी विकसित देश के समकक्ष माना जायेगा और आधुनिकता की हवा का पश्चिम में लहराना तो स्वाभाविक है ही फिर भी भारत वंशी अपने मूल्यों की महत्ता को जानते हैं और वे अपने पुरखों की विरासत को भुलाकर एक बहुमूल्य निधि से वंचित होना नहीं चाहते और इसी उद्देश्य को लेकर इस देश की संस्था हिंदी निधि ने यह अन्तरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन आयोजित किया और इसमें भाग लेने भारत से पाँच तथा यूरोप , अमरीका , दक्षिण पूर्व एशिया एवं प्रतिवेशी देशों से अनेक विद्वान आए ।