| 31. | डालियाँ झकझोरती / रज को उड़ाती आ !
|
| 32. | सुन्दर मृदु-मृदु रज का तन / सुमित्रानंदन पंत
|
| 33. | रज ने मेरी गानद मरनि शुरु कर दि।
|
| 34. | [ रज, तम आदि] गुणों का किया हुआ सन्निपात
|
| 35. | अग्निस्फुलिंग रज का , बुझ डेर हो रहा है
|
| 36. | का रज धीरे होत है , काहे होत अधीर।
|
| 37. | वृक्ष धरा के आभूषण , और रज यहां की
|
| 38. | उसके बाद रज ने भि मेरि चुदयि कि।
|
| 39. | जासु पद रज परस गौतम नारि गति उद्धरन।
|
| 40. | धरी रज ॥ २२६ ॥ आपलिया कार्याचा ।
|