रिश्ते अक्सर अपने स्वाभाविक स्वतंत्र रूप में नहीं होते - कभी उनकी नकेल कानून के हाथ में होती हैं , तो कभी सामाजिक कर्तव्य के , पर इमरोज़ के शब्दों में , “ अगर राह अपनी है , राहदारी की क्या ज़रूरत है ? ” हर कानून “ राहदारी ” होता है।
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रिश्ते अक्सर अपने स्वाभाविक स्वतंत्र रूप में नहीं होते - कभी उनकी नकेल कानून के हाथ में होती हैं , तो कभी सामाजिक कर्तव्य के , पर इमरोज़ के शब्दों में , “ अगर राह अपनी है , राहदारी की क्या ज़रूरत है ? ” हर कानून “ राहदारी ” होता है।
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मेरी हर दोस्त से उसने यही पूछा होगा क्यूँ नहीं आईं क्या बात हुई है आखिर खुद से इस बात पर सौ बार वो उलझा होगा कल वो आएगी तो मैं उससे नहीं बोलूँगा आप ही आप कई बार वो रूठा होगा वो नहीं है तो बुलंदी का सफर कितना कठिन सीढ़ियाँ चढ़ते हुए उसने ये सोचा होगा राहदारी में , हरे लॉन में , फूलों के करीब उस ने हर सिमत मुझे आ के ढूंढा होगा