| 31. | ( धर्म चाण्डाल का वेष धारण करता है)
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| 32. | “प्रति क्षण नूतन वेष बनाकर रंग-विरंग निराला।
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| 33. | हैं स्वयम को आवृत किए , रहते अगोचर वेष में।
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| 34. | वह नर के वेष में नारायण है।
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| 35. | उच्च गगन सम वेष तो , क्या आवेगा काम ।
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| 36. | कौन जाने किस वेष में मिल जाए नारायण . ..
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| 37. | वे नट की भांति अनेकों वेष धारण करते हैं।
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| 38. | अब वे साधू वेष में रहने लगे।
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| 39. | जथा अनेक वेष धरि नृत्य करइ नट कोइ ।
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| 40. | वेष बदलकर वे अफगानिस्तान होते हुए जर्मनी पहॅंुच गये।
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