आज के यथार्थ का सही चित्रण करने के लिए हमें अपने जीवन की संकुलता और सड़ाँध के बीच जीते हुए उसके खाके उतारने होंगे और उस सड़ाँध के बीच कुलबुलाती हुई तथा उसे दूर करने के लिए व्याकुल मानव-चेतना को प्रतिफलित करना होगा।
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याद कीजिए शाहजहाँ का वह गीत-गम दिए मुस्तकिल / कितना नाजुक है दिल-जिसमें दिल की शिकस्तगी रूदाद बयान की गयी है, इस आवाज में एक दीवानगी तो दिखाई देती है लेकिन एक तने हुए स्वभाव की कठोर संकुलता भी उसमें से झांकती प्रतीत होती है।
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याद कीजिए शाहजहाँ का वह गीत-गम दिए मुस्तकिल / कितना नाजुक है दिल-जिसमें दिल की शिकस्तगी रूदाद बयान की गयी है , इस आवाज में एक दीवानगी तो दिखाई देती है लेकिन एक तने हुए स्वभाव की कठोर संकुलता भी उसमें से झांकती प्रतीत होती है।
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मानव की जो ऊर्जस्वितता आज के जीवन को शक्ति दे सकती है , वह इस संकुलता और सड़ाँध से संघर्ष करके निखरती हुई ऊर्जस्वितता होगी , हमें यह विश्वास खो देना नहीं होगा कि वातावरण की इस संकुलता के बीच भी मानव की शक्ति और कोमलता लुप्त नहीं हुई है।
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मानव की जो ऊर्जस्वितता आज के जीवन को शक्ति दे सकती है , वह इस संकुलता और सड़ाँध से संघर्ष करके निखरती हुई ऊर्जस्वितता होगी , हमें यह विश्वास खो देना नहीं होगा कि वातावरण की इस संकुलता के बीच भी मानव की शक्ति और कोमलता लुप्त नहीं हुई है।
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गुप्त जी के पद्य में नाटकीयता तथा कौशल का अभाव होने पर भी संतों जैसी निश्छलता और संकुलता का अप्रयोग उनके साहित्य को आधुनिक साहित्य के तुमुल कोलाहल में शांत , स्थिर, सात्विक घृतपीद का गौरव देता है जो हृदय की पशुता के अंधकार को दूर करने के लिए अपनी ज्योति में आत्म मग्न एवं निष्कंप भाव से स्थित है।
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गुप्त जी के पद्य में नाटकीयता तथा कौशल का अभाव होने पर भी संतों जैसी निश्छलता और संकुलता का अप्रयोग उनके साहित्य को आधुनिक साहित्य के तुमुल कोलाहल में शांत , स्थिर , सात्विक घृतपीद का गौरव देता है जो हृदय की पशुता के अंधकार को दूर करने के लिए अपनी ज्योति में आत्म मग्न एवं निष्कंप भाव से स्थित है।
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जीवन की प्रगति में विश्वास रखनेवाले और उसके कल के रूप को निर्धारित करने में योग देनेवाले कलाकार के लिए क्या यही मार्ग है कि वह उस जीवन से दूर हट जाए , क्योंकि उसमें बहुत संकुलता दिखाई देती है | क्योंकि शहरों के मध्यवर्गीय जीवन में उसे जीवन और सौन्दर्य के दर्शन नहीं होते , इसलिए क्या इसी में उसकी महत्त्वाकांक्षा की परिणति है कि वह गाँवों में जीवन का स्वस्थ सौन्दर्य और मानव की ऊर्जस्वित शक्ति देखकर सन्तुष्ट हो रहे हैं और क्या सचमुच शहरों के मध्यवर्गीय जीवन में कुछ भी स्वस्थ और सुन्दर नहीं है ?