और फिर ऐसे संसद-सदस्य हैं , इसलिए तो मुल्क का आचरण इतना अच्छा है , नहीं तो कभी भी बिगड़ जाता ! धन्य भाग है , हमारे मुल्क का आचरण कितना अच्छा है , अच्छे संसद-सदस्यों के कारण ! जो पता लगाते हैं कि किसके कमरे में कौन सो रहा है !
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संसद-सदस्य ब्रुस स्मिथ ने कहा कि उनकी “निम्न-वर्ग के भारतीयों , चीनियों या जापानियों…को इस देश में झुण्ड बनाकर घूमता हुआ देखने की कोई इच्छा नहीं थी… लेकिन एक अनिवार्यता यह भी थी…कि उन देशों के शिक्षित-वर्ग का अनावश्यक विरोध न किया जाए”[144] तस्मानिया के एक सदस्य डोनाल्ड कैमरून ने विवाद की एक दुर्लभ टिप्पणी व्यक्त की:
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|स्वस्थ मानसिकता वाले वैश्य एवं ब्राहमण भी यदि सत्य धर्म पर आधारित है , तो इस दल के साथ हो सकेंगे |किन्तु वर्तमान जितने भी राजनीतिज्ञ है चाहे वे ग्रामीण और स्थानीय निकायों के हो या संसद-सदस्य ,वे वर्तमान गन्दी राजनीति के आदी है और वे अपने साथ संक्रामक रोग अवश्य लेकर आयेंगे और इस नए राजनितिक दल एवं कार्य-प्रणाली को संक्रमित करदेंगे
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|स्वस्थ मानसिकता वाले वैश्य एवं ब्राहमण भी यदि सत्य धर्म पर आधारित है , तो इस दल के साथ हो सकेंगे |किन्तु वर्तमान जितने भी राजनीतिज्ञ है चाहे वे ग्रामीण और स्थानीय निकायों के हो या संसद-सदस्य ,वे वर्तमान गन्दी राजनीति के आदी है और वे अपने साथ संक्रामक रोग अवश्य लेकर आयेंगे और इस नए राजनितिक दल एवं कार्य-प्रणाली को संक्रमित करदेंगे
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और यहाँ तक कि बिना किसी चरित्र-आचरण के बावजूद इस संसद-सदस्य / विधानसभा-सदस्य नामक जीव को ऐसे कौन से सुरखाब के पर मिल जाते हैं कि कोई नत्थू-खैरा भी हमारे-आपके ही संबंधों और वोटों से हम-आपके बीच से उठकर देखते-ना-देखते कहाँ का कहाँ पहुँच जाता है , उसकी बोली बदल जाती है , यहाँ तक कि वह अपने उस भूत के समाज तक को नहीं पहचानता , जहां से वो आया है !!
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नयी दिल्ली में जब किसी संसद-सदस्य से दोस्ती न होने के कारण उनके आवास-भवनों में रियायती कमरा न मिल सका , और होटलों के किराये देखकर यह समझ में आ गया कि दूर-दूर के लोग क्यों सैलानी होकर ( या ऑल इंडिया रेडियो के अन्तरभाषिक कवि-सम्मेलन के कवि नहीं तो अनुवादक होकर ) दिल्ली आने की अपेक्षा सरकारी कमेटी के सदस्य होकर आना ही अधिक पसन्द करते हैं , तब किसी दयालु दक्षिणी ने सुझाया कि दिल्ली में काम हो तो मेरठ या फरीदाबाद रहकर आते-जाते रहना किफायत का रास्ता हो सकता है।