ऐसे में जिओ-इंजीनियरिंग के विकल्प से बचने की कोशिश ख़तरनाक साबित हो सकती है . आईमेकई के विशेषज्ञों ने सैंकड़ो जिओ-इंजीनियरिंग प्रस्तावों पर विचार करने के बाद तीन विकल्पों को व्यावहारिक और असरदार माना है- कृत्रिम पेड़ लगाना, छतों को सूर्यातप परावर्तक सतह के रूप में बदलना और शैवाल(अल्गी) आधारित ईंधन को आम प्रचलन में लाना.कृत्रिम पेड़ देखने में भले ही बदसूरत मशीन जैसा दिखेंगे, लेकिन वायुमंडल के कार्बन डाइ ऑक्साइड को सोखने के काम में वे नैसर्गिक पेड़ों से हज़ार गुना बेहतर होंगे.
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जेठ की दोपहरी में , नंगे बदन सूर्यातप को झेल रहा | बैठ दोपहरी की छाती पर , चुने पत्थर से खेल रहा गिरा हथोडा पत्थर पर स्वेद बूंद टपक पड़ी कोने में दुबकी छाया की बरबस आँखे छलक पड़ी ; साँझावार धुप और लू का उसने अंगोछे में समेट लिया उठा परत पत्थर की सर पर दुपहरी के तन को भेद दिया ; हो बेबस अब दोपहरी चुपके से पीछे खिसक गयी | वो बैठ छांव में सोच रहा आज की रोटी तो मिल गयी |