बौद्ध धर्म भी अनीश्वरवाद पर टिका है , किंतु उसमें कर्मवाद है, कर्म ही प्राणियों के जन्ममरण के चक्र का कारण माना गया है ।
42.
लेकिन समाजवादी के मूल में अगर भौतिकवाद हो और उस भौतिकवाद के मूल में अनीश्वरवाद हो , तब तो यह सवाल उठ सकता है।
43.
वह समय और परिस्थिति अनीश्वरवाद के लिए बहुत ही अनुकूल थी , यदि उसकी लहर चल पड़ती तो उसे रोकना बहुत ही कठिन हो जाता।
44.
आपका अमल अगर इन्हीं के अनुसार हो तो हमें आपके अनीश्वरवाद से - आपकी नास्तिकता से - कोई मतलब नहीं , उसकी परवाह हम नहीं करते।
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चार आर्यसत्य , अनित्यता , दु : खता , अनात्मता क्षणभङ्गवाद , अनात्मवाद , अनीश्वरवाद आदि बौद्धों के प्रसिद्ध दार्शनिक सिद्धान्त इसी प्रतीत्यसमुत्पाद के प्रतिफलन हैं।
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चार आर्यसत्य , अनित्यता , दु : खता , अनात्मता क्षणभङ्गवाद , अनात्मवाद , अनीश्वरवाद आदि बौद्धों के प्रसिद्ध दार्शनिक सिद्धान्त इसी प्रतीत्यसमुत्पाद के प्रतिफलन हैं।
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बौद्ध धर्म भी अनीश्वरवाद पर टिका है , किंतु उसमें कर्मवाद है , कर्म ही प्राणियों के जन्ममरण के चक्र का कारण माना गया है ।
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पंथनिरपेक्ष समाज बनाने के लिए विभिन्न पंथों के लोगों को एकदूसरे के पंथों की आस्थाओं को सहने के साथ-साथ नास्तिकों के अनीश्वरवाद को भी स्वीकार करना होगा।
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पंथनिरपेक्ष समाज बनाने के लिए विभिन्न पंथों के लोगों को एकदूसरे के पंथों की आस्थाओं को सहने के साथ-साथ नास्तिकों के अनीश्वरवाद को भी स्वीकार करना होगा।
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क्या इससे बुद्ध का अनात्मवाद और अनीश्वरवाद के सिद्धांतों का खत्म होते हुए नजर नहीं आता ? क्या ये बुद्धा की शिक्षा से विरोधी नहीं है |