वेदों के पठन-पाठन में उदात्त एवं अनुदात्त स्वरों , आरोह-अवरोह, उच्चारण माधुर्य और लयात्मकता के प्रभाव पर सर्वाधिक ध्यान दिया जाना जरूरी है।
42.
हृस्व उदात्त स्वर के उच्चारण को जो काल लगता है , उतना ही हृस्व अनुदात्त और हृस्व स्वरित के उच्चारण में लगता है।
43.
वेदों के पठन-पाठन में उदात्त एवं अनुदात्त स्वरों , आरोह-अवरोह , उच्चारण माधुर्य और लयात्मकता के प्रभाव पर सर्वाधिक ध्यान दिया जाना जरूरी है।
44.
#व्याकरण - इससे प्रकृति और प्रत्यय आदि के योग से शब्दों की सिद्धि और उदात्त , अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की स्थिति का बोध होता है।
45.
#व्याकरण - इससे प्रकृति और प्रत्यय आदि के योग से शब्दों की सिद्धि और उदात्त , अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की स्थिति का बोध होता है।
46.
जिनमें स्वरित , उदात्त , अनुदात्त , प्लुत , गुंकार , जिह्वामूलीय तथा विभिन्न प्रकार के अनुस्वार तथा अनुनासिक एवं विसर्ग आदि स्वर चिह्न प्रमुख हैं।
47.
जिनमें स्वरित , उदात्त , अनुदात्त , प्लुत , गुंकार , जिह्वामूलीय तथा विभिन्न प्रकार के अनुस्वार तथा अनुनासिक एवं विसर्ग आदि स्वर चिह्न प्रमुख हैं।
48.
उदात्त अनुदात्त भावों के उतार- चढा़व वातावरण में कम्पन पैदा करते हैं एवं उनका प्रभाव शरीर की सूक्ष्म ग्रन्थियों एवं अन्य महत्त्वपूर्ण अवयवों पर होता है।
49.
3 . व्याकरण - इससे प्रकृति और प्रत्यय आदि के योग से शब्दों की सिद्धि और उदात्त , अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की स्थिति का बोध होता है।
50.
3 . व्याकरण - इससे प्रकृति और प्रत्यय आदि के योग से शब्दों की सिद्धि और उदात्त , अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की स्थिति का बोध होता है।