किंतु सूक्ष् म दृष्टि से प्रत् यक्षवाद का विचार रख के विचारिए तो अवगत हो जाएगा कि छल में यदि केवल इतनी बुराई है कि धर्मशास् त्र की अवज्ञा होती है तो भलाई भी प्रत् यक्ष तथा इतनी ही है कि इसके द्वारा निर्धन दूसरों के धन का , निर्बल दूसरों के बल का , अविद्य दूसरों की विद्या का , अप्रतिष्ठित दूसरों की प्रतिष् ठा का भोग कर सकते हैं।
42.
किंतु सूक्ष् म दृष्टि से प्रत् यक्षवाद का विचार रख के विचारिए तो अवगत हो जाएगा कि छल में यदि केवल इतनी बुराई है कि धर्मशास् त्र की अवज्ञा होती है तो भलाई भी प्रत् यक्ष तथा इतनी ही है कि इसके द्वारा निर्धन दूसरों के धन का , निर्बल दूसरों के बल का , अविद्य दूसरों की विद्या का , अप्रतिष्ठित दूसरों की प्रतिष् ठा का भोग कर सकते हैं।
43.
किताब वाले ' ( ईसाई , यहूदी आदि ) जो न अल्लाह पर ‘ ईमान ' लाते हैं और न ‘ आख़िरत ' पर और न उसे ‘ हराम ' करते हैं जिसे अल्भ्लाह और उसके ‘ रसूल ' ने ‘ हराम ' ठहराया है और वे न सच्चे ‘ दीन ' को अपना ‘ दीन ' बनाते हैं , उनसे लड़ो यहाँ तक कि अप्रतिष्ठित होकर अपने हाथ से ज़िज़िया देने लगें।
44.
21 - ' ' किताब वाले '' जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं न अन्तिम दिन पर , न उसे ' हराम ' करते हैं जिसे अल्लाह और उसके रसूल ने हराम ठहराया है , और न सच्चे दीन को अपना ' दीन ' बनाते हैं उनकसे लड़ो यहाँ तक कि वे अप्रतिष्ठित ( अपमानित ) होकर अपने हाथों से ' जिजया ' देने लगे। '' ( १ ० . ९ . २ ९ . पृ . ३ ७ २ )
45.
और इतना लड़ो कि वह अप्रतिष्ठित हो कर जजिया देने पर विवश हो जाएँ “ सूरा अत तौबा 9 : 29 9 -मुहमद की हड़प नीति “ अबू हुरैरा ने कहा कि रसूल ने कहा कि , जब तुम किसी काफ़िर , मुशरिक या ईसाई से व्यवहार करो तो उन से इन तीन प्रकार से बर्ताव करो , यदि वह ख़ुशी से कुछ दे दें तो स्वीकार कर लो , फिर उनको इस्लाम काबुल करने की शर्त रखो , यदि वह यह शर्त नहीं मानें तो उनसे जजिया की मांग करो .