पूर्णिमा तिथि को दिन में कभी भी , किसी भी कार्य से अथवा किसी भी उद्देश्य से यात्रा नहीं करनी चाहिये क्योंकि पूर्णमासी को दिन में यात्रा करना कार्य की असिद्धि का द्योतक है।
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२ . ४८वें श्लोक में इसके विस्तार में सिद्धि और असिद्धि भी आ जाती है और तब वह योग की बराबरी कर लेता है - 'समत्व योग' जिस के द्वारा जीवनमुक्ति प्राप्त होने की संपुष्टि गीता कर रही हैं।
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देखा , वहा रिक्त स्थान, यह जप का पूर्ण समय आसन छोड़ा असिद्धि, भर गए नयन-द्वय; - “धिक् जीवन को जो पाता ही आया है विरोध, धिक् साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध जानकी! हाय उद्धार प्रिया का हो न सका;
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२ . ४ ८ वें श्लोक में इसके विस्तार में सिद्धि और असिद्धि भी आ जाती है और तब वह योग की बराबरी कर लेता है - ' समत्व योग ' जिस के द्वारा जीवनमुक्ति प्राप्त होने की संपुष्टि गीता कर रही हैं।
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अनुच्छेद २ और ५ के श्लोक ४८ और १० में कहा गया हे सब कुछ भगवान का समझ कर सिद्धि असिद्धि में समत्वभाव रखते हुए आसक्ति और फल की इच्छा का तय कर केवले भगवान के लियें ही सब आचरण करना हे . त्वमेव माता च पिता त्वमेव बन्धुश्च सखा
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जो बिना इच्छा के अपने-आप प्राप्त हुए पदार्थ में सदा सन्तुष्ट रहता है , जिसमें ईर्ष्या का सर्वथा अभाव हो गया है, जो हर्ष-शोक आदि द्वन्द्वों में सर्वथा अतीत हो गया है - ऐसा सिद्धि और असिद्धि में सम रहने वाला कर्मयोगी कर्म करता हुआ भी उनसे नहीं बँधता |
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भावार्थ : जो बिना इच्छा के अपने-आप प्राप्त हुए पदार्थ में सदा संतुष्ट रहता है, जिसमें ईर्ष्या का सर्वथा अभाव हो गया हो, जो हर्ष-शोक आदि द्वंद्वों से सर्वथा अतीत हो गया है- ऐसा सिद्धि और असिद्धि में सम रहने वाला कर्मयोगी कर्म करता हुआ भी उनसे नहीं बँधता॥22॥
48.
तू आसक्ति को त्यागकर तथा सिद्धि और असिद्धि में समान बुद्धिवाला होकर योग में स्थित हुआ कर्तव्य कर्मों को कर , समत्व (जो कुछ भी कर्म किया जाए, उसके पूर्ण होने और न होने में तथा उसके फल में समभाव रहने का नाम ‘समत्व' है।) ही योग कहलाता है ॥48॥
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भावार्थ : हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर तथा सिद्धि और असिद्धि में समान बुद्धिवाला होकर योग में स्थित हुआ कर्तव्य कर्मों को कर, समत्व (जो कुछ भी कर्म किया जाए, उसके पूर्ण होने और न होने में तथा उसके फल में समभाव रहने का नाम 'समत्व' है।) ही योग कहलाता है॥48॥
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' ' कान्ट , मिल , हेल्स , होल्टज , लाँग , हक्सले , कम्टे आदि वैज्ञानिकों ने ईश्वर की असिद्धि के बारे में जो कुछ लिखा है वह बहुत पुराना हो गया , उनकी ये युक्तियाँ जिनके आधार पर ईश्वर का खण्डन किया जाया करता था अब असामयिक होती जाती हैं ।।