विरोधी ज्ञान के रहते हुए ज्ञाता की इच्छा से उत्पन्न होनेवाला ज्ञान “आरोप” या “आहार्य” कहा जाता है , जैसे रांगा को चाँदी बताकर किसी गँवार के हाथ उसे बेचनेवाले ठग को रांगे में चाँदीपन के अभाव का ज्ञान होते हुए भी उसमें इच्छापूर्वक चांदीपन का ज्ञान।
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विरोधी ज्ञान के रहते हुए ज्ञाता की इच्छा से उत्पन्न होनेवाला ज्ञान “आरोप” या “आहार्य” कहा जाता है , जैसे रांगा को चाँदी बताकर किसी गँवार के हाथ उसे बेचनेवाले ठग को रांगे में चाँदीपन के अभाव का ज्ञान होते हुए भी उसमें इच्छापूर्वक चांदीपन का ज्ञान।
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अत : जिस ने रमज़ान के दिन में जानबूझ कर इच्छापूर्वक संभोग कर लिया इस प्रकार कि दोनों पक्ष के खतने आपस में मिल जाते हैं और लिंग का टिप दोनों रास्तों में से किसी एक में समागम हो जाता है , तो उसका रोज़ा फासिद हो गया , चाहे वीर्य पात हो या न हो।
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इनमें यह होता था कि जब कहीं आसपास कोई गड़बड़ हो , या गड़बड़ की अफवाह हो , तो उसका उद्भव या कारण चाहे हिन्दू सुना जाए चाहे मुसलमान , सब लोग अपने-अपने किवाड़ बन्द करके जहाँ के तहाँ रह जाते , बाहर गये हुए शाम को घर न लौटकर बाहर ही कहीं रात काट देते , और दूसरे-तीसरे दिन तक घर के लोग यह न जान पाते कि गया हुआ व्यक्ति इच्छापूर्वक कहीं रह गया है या कहीं रास्ते में मारा गया है ...