“यदि तुम मुक्ति चाहते हो तो विषयों को विष के समान समझ कर त्याग दो और क्षमा , ऋजुता (सरलता), दया और पवित्रता इनको अमृत की तरह पी जाओ।” - चाणक्यनीति - अध्याय 9
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“यदि तुम मुक्ति चाहते हो तो विषयों को विष के समान समझ कर त्याग दो और क्षमा , ऋजुता (सरलता), दया और पवित्रता इनको अमृत की तरह पी जाओ।” - चाणक्यनीति - अध्याय 9
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“ यदि तुम मुक्ति चाहते हो तो विषयों को विष के समान समझ कर त्याग दो और क्षमा , ऋजुता ( सरलता ) , दया और पवित्रता इनको अमृत की तरह पी जाओ।
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“ यदि तुम मुक्ति चाहते हो तो विषयों को विष के समान समझ कर त्याग दो और क्षमा , ऋजुता ( सरलता ) , दया और पवित्रता इनको अमृत की तरह पी जाओ।
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हाइकु जैसी ही छोटी कद काठी और वैसी ही सादगी , ऋजुता और गम्भीरता जहाँ वर्मा जी के व्यक्तित्व का हिस्सा थी, वहीं अनथक श्रमशीलता, कार्य के प्रति समर्पण और प्रतिवद्धता ने उन्हें कार्मयोगी बना डाला।
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हाइकु जैसी ही छोटी कद काठी और वैसी ही सादगी , ऋजुता और गम्भीरता जहाँ वर्मा जी के व्यक्तित्व का हिस्सा थी, वहीं अनथक श्रमशीलता, कार्य के प्रति समर्पण और प्रतिवद्धता ने उन्हें कार्मयोगी बना डाला।
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आधुनिकता की लहर और कृत्रिम विकास ने ( प्रकृति संहारक विकास ) भारतीय समाज की ऋजुता छीनकर उसे जटिल जीवन जीने और उससे उकता कर आत् महत् या करने के लिए बाध्य कर दिया है।
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मित्रता के साथ जिस क्षण आत्मालोचन का उपक्रम जुड़ता है , क्षमा के आदान-प्रदान का विनम्र व्यवहार होता है उसी क्षण हमारी निश्छलता , पापभीरूता , ऋजुता और जागरूकता की उपस्थिति में सारे निषेधात्मक भाव , संस्कार विराम पा लेते हैं।
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मित्रता के साथ जिस क्षण आत्मालोचन का उपक्रम जुड़ता है , क्षमा के आदान-प्रदान का विनम्र व्यवहार होता है उसी क्षण हमारी निश्छलता , पापभीरूता , ऋजुता और जागरूकता की उपस्थिति में सारे निषेधात्मक भाव , संस्कार विराम पा लेते हैं।
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यदि जैनेन्द्र के पात्र ठिठके हुए फैसलों के बीच सोचते हुए पात्र हैं तो उस सोच को व्यक्त करती हुई भाषा भी छोटे-छोटे वाक्यों में प्रकट होती है , मानो चिंतन की संश्लिष्टता का सामना करने के लिए भाषा की ऋजुता जरूरी हो .