मतिराव , देव , चिन्तामणि आदि की तरह यह केवल ऐंद्रिय नहीं है , हास-विलास , केलि-क्रीड़ा ही नहीं है , बल्कि एक उदात्तता का प्रतीक है।
42.
चार्वाक के नैतिक मंतव्यों का कोई व्यवस्थित वर्णन उपलब्ध नहीं है , किंतु यह समझा जाता है कि उसके सौख्यवाद में स्थूल ऐंद्रिय सुख को ही महत्व दिया गया है।
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चार्वाक के नैतिक मंतव्यों का कोई व्यवस्थित वर्णन उपलब्ध नहीं है , किंतु यह समझा जाता है कि उसके सौख्यवाद में स्थूल ऐंद्रिय सुख को ही महत्व दिया गया है।
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चार्वाक के नैतिक मंतव्यों का कोई व्यवस्थित वर्णन उपलब्ध नहीं है , किंतु यह समझा जाता है कि उसके सौख्यवाद में स्थूल ऐंद्रिय सुख को ही महत्व दिया गया है।
45.
वेद वर्णित भोग में ऐंद्रिय सुख की अपेक्षा है जब कि औपनिषिदिक भोग में ऐंद्रिय सुख ध्येय नहीं है यद्यपि वह केवल इसलिये भी त्याज्य नहीं है कि वह ऐंद्रिय है।
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वेद वर्णित भोग में ऐंद्रिय सुख की अपेक्षा है जब कि औपनिषिदिक भोग में ऐंद्रिय सुख ध्येय नहीं है यद्यपि वह केवल इसलिये भी त्याज्य नहीं है कि वह ऐंद्रिय है।
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वेद वर्णित भोग में ऐंद्रिय सुख की अपेक्षा है जब कि औपनिषिदिक भोग में ऐंद्रिय सुख ध्येय नहीं है यद्यपि वह केवल इसलिये भी त्याज्य नहीं है कि वह ऐंद्रिय है।
48.
वह जितना ही अपने चित्त को इंद्रियों और उनके विषयों से दूर खींचता है उतना ही उसकी ऐंद्रिय शक्ति भी बढ़ती है अर्थात् इंद्रियों की विषयों के भोग की शक्ति भी बढ़ती है।
49.
वह जितना ही अपने चित्त को इंद्रियों और उनके विषयों से दूर खींचता है उतना ही उसकी ऐंद्रिय शक्ति भी बढ़ती है अर्थात् इंद्रियों की विषयों के भोग की शक्ति भी बढ़ती है।
50.
जैसे यदि ज्ञान , धर्म, रीति-रिवाज, परंपराओं, प्रतिष्ठा और स्वाभिमान के कारक गुरु तथा सौंदर्य, भौतिकता और ऐंद्रिय सुख के कारक शुक्र के जातक और जातका की मानसिकता, सोच और जीवन शैली बिल्कुल विपरीत होती है।