हम जीवित हिन्दू उस गाय के बिना कबन्ध हैं , इस कबन्ध के लिये ही मारा-मारी में जुटे हैं अपराध , भ्रष्टाचार और राजनीति का दलिद्दर चेहरा ऐसे ही कबन्ध रूपी समाज में चल सकता था ...
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हम जीवित हिन्दू उस गाय के बिना कबन्ध हैं , इस कबन्ध के लिये ही मारा-मारी में जुटे हैं अपराध , भ्रष्टाचार और राजनीति का दलिद्दर चेहरा ऐसे ही कबन्ध रूपी समाज में चल सकता था ...
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हम जीवित हिन्दू उस गाय के बिना कबन्ध हैं , इस कबन्ध के लिये ही मारा-मारी में जुटे हैं अपराध , भ्रष्टाचार और राजनीति का दलिद्दर चेहरा ऐसे ही कबन्ध रूपी समाज में चल सकता था ...
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इतनी विलक्षणताओं से युक्त दण्डकारण्य अगर रामायण में घटनाओं का बड़ा भारी केंद्र बन कर उभरा है तो इसमें भला हैरानी क्यों होनी चाहिए ? यहीं राम ने सबसे पहले विरध को और फिर कबन्ध को मारा।
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वैसे भी यह तो वही श्री राम हैं जो कि एक भीलनी शबरी से मात्र मिलने के लिये अपने रास्ते से हटकर जाते हैं , उस शबरी के पास कि जिससे मिलने के लिये सूचना एक राक्षस कबन्ध देता है।
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वह वक्ष : स्थल पर कबन्ध ( धड ) की तथा मस्तक पर मुण्डों की माला धारण किये हुए थी॥ 9 ॥ इस प्रकार प्रकट हुई स्त्रियों में श्रेष्ठ तामसी देवी ने महालक्ष्मी से कहाञ्ा माताजी ! आपको नमस्कार है।
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रास्ते में राम ने दुर्वासा के शाप के कारण राक्षस बने गन्धर्व कबन्ध का वध करके उसका उद्धार किया और शबरी के आश्रम जा पहुँचे जहाँ पर कि उसके द्वारा दिये गये झूठे बेरों को उसके भक्ति के वश में होकर खाया
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रास्ते में राम ने दुर्वासा के शाप के कारण राक्षस बने गन्धर्व कबन्ध का वध करके उसका उद्धार किया और शबरी के आश्रम जा पहुँचे जहाँ पर कि उसके द्वारा दिये गये झूठे बेरों को उसके भक्ति के वश में होकर खाया।
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रास्ते में राम ने दुर्वासा के शाप के कारण राक्षस बने गन्धर्व कबन्ध का वध करके उसका उद्धार किया और शबरी के आश्रम जा पहुँचे जहाँ पर कि उसके द्वारा दिये गये झूठे बेरों को उसके भक्ति के वश में होकर खाया।
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रास्ते में राम ने दुर्वासा के शाप के कारण राक्षस बने गन्धर्व कबन्ध का वध करके उसका उद्धार किया और शबरी के आश्रम जा पहुँचे जहाँ पर कि उसके द्वारा दिये गये झूठे बेरों को उसके भक्ति के वश में होकर खाया।