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शब्दकोश > हिंदी शब्दकोश > "क्लांति" अर्थ

क्लांति का अर्थ

उदाहरण वाक्य
41.सूत्रधार नही , चन्द्रिका नही, न तो कुसुमॉ की सहचरियाँ है, ये जो शशधर के प्रकाश मॅ फूलॉ पर उतरी है, मनमोहिनी, अभुक्त प्रेम की जीवित प्रतिमाऍ है देवॉ की रण क्लांति मदिर नयनॉ से हरने वाली स्वर्ग-लोक की अप्सरियाँ, कामना काम के मन की.

42.पर उनका मानना है कि बिना किसी स्पष्ट प्रयोजन के एक सीमा से ज्यादा इस तरह एक स्थान से दूसरे स्थान का भ्रमण स्वास्थ और ताज़गी के बजाए थकावट और क्लांति देने लगता है और सीआरपी के चलते रहने में ऍसा ही कुछ हुआ है।

43.पर उनका मानना है कि बिना किसी स्पष्ट प्रयोजन के एक सीमा से ज्यादा इस तरह एक स्थान से दूसरे स्थान का भ्रमण स्वास्थ और ताज़गी के बजाए थकावट और क्लांति देने लगता है और सीआरपी के चलते रहने में ऍसा ही कुछ हुआ है।

44.पर , तब भी हम छिन्न नहीं इतिहासों की धारा से कौन नहीं जानता पुरुष जब थकता कभी समर में , किस मुख का कर ध्यान , याद कर किसके स्निग्ध- दृगॉ को क्लांति छोड़ वह पुन : नए पुलकॉ से भर जाता है ?

45.इसकी अर्थवत्ता इस तथ्य में भी अंतर्निहित है कि यह मूलत : राम की दो विजय यात्राओं पर आधारित है जिसमें प्रथम यात्रा यदि प्रेम-संयोग , हास-परिहास तथा आनंद-उल्लास से परिपूर्ण है , तो दूसरी क्लेश , क्लांति , वियोग , व्याकुलता , विवशता और वेदना से आवृत्त।

46.इसकी अर्थवत्ता इस तथ्य में भी अंतर्निहित है कि यह मूलत : राम की दो विजय यात्राओं पर आधारित है जिसमें प्रथम यात्रा यदि प्रेम-संयोग , हास-परिहास तथा आनंद-उल्लास से परिपूर्ण है , तो दूसरी क्लेश , क्लांति , वियोग , व्याकुलता , विवशता और वेदना से आवृत्त।

47.सूत्रधार नही , चन्द्रिका नही , न तो कुसुमॉ की सहचरियाँ है , ये जो शशधर के प्रकाश मॅ फूलॉ पर उतरी है , मनमोहिनी , अभुक्त प्रेम की जीवित प्रतिमाऍ है देवॉ की रण क्लांति मदिर नयनॉ से हरने वाली स्वर्ग-लोक की अप्सरियाँ , कामना काम के मन की .

48.बेशक बौद्धिक सक्रियता को स्वभाव से पृथक नहीं किया जा सकता , जो मानसिक सक्रियताओं की गति तथा धाराप्रवाहिता , ध्यान की स्थिरता तथा परिवर्तनशीलता , काम में ‘ प्रवृत्त ' होने की गतिकी , काम के दौरान संवेगात्मक आत्म-नियंत्रण और तंत्रिका-तनाव तथा क्लांति ( stress and fatigue ) की मात्रा जैसे अभिलक्षणों को प्रभावित करता है।

49.मुड़ी डगर मैं ठिठक गया वन-झरने की धार साल के पत्ते पर से झरती रही मैने हाथ पसार दिये वह शीतलता चमकीली मेरी अंजुरी भरती रही गिरती बिखरती एक कलकल करती रही भूल गया मैं क्लांति , तृषा , अवसाद , याद बस एक हर रोम में सिहरती रही लोच भरी एडि़याँ लहराती तुम्हारी चाल के संग-संग मेरी …

50.सांझ ढ़ले , गगन तले, हर घर में दिया बाती जले, मन की विष्रांती कलेश क्लांति पल भर को मौन हुए, मन में राम, कहीं अली, गिरिजा का घंटा, गुरुबानी कहीं मन की श्रद्धा के अनेकों नाम कहीं अल्लाह, कहीं भगवान नारी रूप में सर ढके श्र्द्धा आस्था संस्कार चुने, मां के हाथों जब दिया जले मां के मन सी ही बात कहे, सांझ ढ़ले गगन तले जब जब घर में दिया जले...!!!

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