वादन में नगाड़े , ढप , ढोल , खंजरी ' बांसुरी , अलगोजा , बम , चंग , उपंग मोचंग , ढपली आदि वाद्यों का प्रयोग होता है ।
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महाराज बोले कि भाइ तबला बजवाना हो तो ठिक है और अगर खंजरी बजवाना हो तो सामने किशनवा ( किशन महाराज ) रहता है चले जाओं उसके पास ।
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इतने में एक साधु रामरज से रंगी हुई कफनी पहने , रामनन्दी तिलक लगाये हाथ में खंजरी लिए कुछ दूर नदी के किनारे बैठा यह गाता हुआ दिखाई पड़ा-
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बालाघाट जिले की कटंगी पुलिस ने अशोक पिता भैयालाल कुल्हाडे़ 56 वर्ष सिवनी निवासी की इस शिकायत पर कटंगी के समीप खंजरी ग्राम निवासी चंद्रकिशोर और छोटु हरिनखेरे . ..
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गरबा नृत्य में ताली , चुटकी, खंजरी, डंडा, मंजीरा आदि का ताल देने के लिए प्रयोग होता हैं तथा स्रियाँ दो अथवा चार के समूह में मिलकर विभिन्न प्रकार से आवर्त
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एकमुखी अवनद्ध वाद्यः इन वाद्यों के एक नग में एक ही `मुख ' कोचर्माव-~ नद्ध करके बजाया जाता है, जैसे झील, ताशा, दुंदुभि, धौंसा, खंजरी, चंग, ढफ़, नक्क़ारः (नगाड़ा), धामा, दुक्कड़, तबला इत्यादि.
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एक दिन वह अपनी दुकान में काम कर रहा था कि एक कुबड़ा एक दफ ( बड़ी खंजरी जैसा बाजा ) ले कर आया और उसकी दुकान के नीचे बैठ कर गाने लगा।
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भिनसारे ले हर-बोलवा मनरूख ले अलख जगावंय ! झुनकी घुंघरू संग मजीराधरे खंजरी गावंय!भाग देख दरवजा आइनहर गंगा दुहरावंय!सबके मंगल अपन संग ममालिक ले गोहरावंय!अब अपन हित खातिर पर के गर म छुरी चलावत हें!
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जिस गांव में रोज सुबह - शाम संत तुकड़ो जी महाराज के भजनो पर खंजरी की थाप गुंजा करती थी आज उसी गांव में बात - बात पर खंजर निकलने से लोग घरो में दुबके रहते थे .
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इस दौरान ढोलक पर सुजान सिंह राजपूत , बैंजो पर अशोक मधुर, कैसियो पर छोटे राजा व खिलान सिंह, कांच की ढपली पर शंकर सिंह बुंदेला, झींका पर रामराज, खंजरी पर बृजेश व मंजीरा पर गंगाराम ने संगत की।