ये मौका वे देती ही कहाँ है - आखिर इतना कुछ तो दे ही गयी न चार आँखें -लोग तो एक को ही तरसते … चार आँखों से गर वोह है देखती तो हमे भी चार आँखों से ही दीखता है यार रब्ब जाने यह कोई छूत का रोग है या फिर इश्क का असर है मेरे यार ” ! ! कुछ अलग ही अंदाज राज भाई आप की लिंक पोस्ट अक्सर शून्य पर ले जाती है मुश्किल ..