| 41. | उपर्युक्त छ : में तीन-श्रवण , दास्य और सख्य और जोड़ दिये गये हैं।
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| 42. | परन्तु याद रहे की दास्य भाव मे प्रश्नों के लिये कोई स्थान नहीं हैं।
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| 43. | अपना सब कुछ मालिक के ऊपर छोड़ देना ही दास्य भाव का आदर्श है।
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| 44. | दास्य , सख्य वात्सल्यभाव के परिकरों की कृष्ण-सेवा उनके सम्बन्ध के अनुरूप होती है।
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| 45. | दास्य भाव उनमें कूट-कूट कर भरा हुआ है , भक्ति भाव से वे परिपूर्ण हैं.
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| 46. | इसलिए शान्त , दास्य , सख्य , वात्सल्य , मधुर-भेद से रस पञ्चविध है।
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| 47. | इसलिए शान्त , दास्य , सख्य , वात्सल्य , मधुर-भेद से रस पञ्चविध है।
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| 48. | वात्सल्य , सख्य, दास्य, माधुर्य और शांत, भगवान से सम्बन्ध जोडने के ये पाँच मार्ग है।
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| 49. | रामावतार में दास्य भक्ति की बात है परंतु कृष्णावतार में सख्य भक्ति की बात है।
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| 50. | दास्य : ईश्वर को स्वामी और अपने को दास समझकर परम श्रद्धा के साथ सेवा करना।
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