अभिमान शून्य रहकर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल रहता है जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की पिपीलिका ( चींटी) इन कणों को सरलतापूर्वक चुन लेती है।
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अभिमान शून्य रहकर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल रहता है जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की पिपीलिका ( चींटी ) इन कणों को सरलतापूर्वक चुन लेती है।
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युधिष्ठिर के राजसूय-यज्ञ में उपस्थितों के नाम गिनाते हुए दुर्योधन कहता है कि मेरु मंदिर पर्वतों के मध्य शैलोक्ष नदी के किनारे निवास करने वाले खस-एकासन , पारद, कुलिंद, तंगव और परतंगण नामक पर्वतीय राजा काले रंग का चंबर और पिपीलिका जाति का स्वर्ण लाए थे।
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युधिष्ठिर के राजसूय-यज्ञ में उपस्थितों के नाम गिनाते हुए दुर्योधन कहता है कि मेरु मंदिर पर्वतों के मध्य शैलोक्ष नदी के किनारे निवास करने वाले खस-एकासन , पारद, कुलिंद, तंगव और परतंगण नामक पर्वतीय राजा काले रंग का चंबर और पिपीलिका जाति का स्वर्ण लाए थे।
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माँ का स्पर्श , पिता की उंगली, बहन का टीका, दोस्त की नसीहत, सूरज का उगाना, मुर्गे की बाँग, पाँव की ठोकर, कौवा, बगुला, पिपीलिका, मधुमक्खी चारो तरफ़ शिक्षक अपनी पूर्णता के साथ उपस्थित है आपने उनको को छोड़ उसके बारे में लिखा जो शिक्षक है ही नही ?
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मैं भी उस मन्दिर में देवी के दर्शन करने सपत्नीक गया था , मगर वहाँ दर्शनार्थियों की दो मील लम्बी पिपीलिका पंक्ति को देखकर मैं हताश हो गया और केवल मन्दिर के दर्शन कर तथा उसके बगल से गुजरती पहाड़ी नदी का जल सिर पर छिड़ककर लौट आया।
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जिस प्रकार पक्षी अपने पंखोंकी सहायतासे उड़कर लम्बी दूरी भी तत्काल तय कर लेता है जबकि चीटियोंको उतनी दूरी तय करनेमें अनेकों जन्म पर्यन्त निरन्तर यात्रा करनी पड़ सकती है , तथापि अनेकों विघ्नबाधाओंके चलते सभी चीटियाँ गन्तव्य पर्यन्त पहुँच नहीं सकती है, इसी प्रकार पिपीलिका मार्गसे चलनेवाले सभी साधक परमात्मा तक नहीं पहुँच सकते हैं ।
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पिपीलिका के लिए सव्य होकर पत्ते पर भोग लगाकर पिपीलिका को दे , इसके बाद हाथ में जल लेकर ॐ विष्णवे नम : ॐ विष्णवे नम : ॐ विष्णवे नम : बोलकर ये कर्म भगवान विष्णु जी के चरणों में छोड़ दे ! इस कर्म से आपके पत्र बहुत प्रसन्न होंगे एवं आपके मनोरथ पूर्ण करेंगे !
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पिपीलिका के लिए सव्य होकर पत्ते पर भोग लगाकर पिपीलिका को दे , इसके बाद हाथ में जल लेकर ॐ विष्णवे नम : ॐ विष्णवे नम : ॐ विष्णवे नम : बोलकर ये कर्म भगवान विष्णु जी के चरणों में छोड़ दे ! इस कर्म से आपके पत्र बहुत प्रसन्न होंगे एवं आपके मनोरथ पूर्ण करेंगे !
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हम तो आपकी विनम्रता के कायल हैं हिमांशु ! आज की चर्चा की प्रस्तावना ने मुझे मानस के इस दोहे की याद दिला दी - अति अपार जे सरित बर जौ नृप सेतु कराहिं चढि पिपिलिकऊ परम लघु बिनु श्रम पारहिं जाहिं एक साहित्यकार में तुलसी की यह उदार विनम्रता ही मैं खोजता फिरता हूँ ! आत्मश्लाघा का निर्लज्ज उद्घोष नहीं अब यह पिपीलिका श्रम नए सेतुओं का निर्माण करे -यही मनोकामना है !