हो सकता है कि हम अपने आपको सत्य तथा अहिंसा का अवतार मान कर ऐसे मतांध एवं दुराग्रही बन जावें कि हम सामने वाले की परिस्थिति , सामने वाले की मज़बूरी और सामने वाले के दृष्टिकोण को सहानुभूति पूर्वक देखने से ही इनकार कर दें और अपने आपको सत्य का ठेकेदार मानकर आत्मपीड़न द्वारा अपने लिए तथा सामने वाले के लिये उद्वेग खड़ा कर दें।
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इस्लामी मतांध तलवार के सामने सर झुकाए हुए , मृत्यु के भय से अपने पूर्वजों के धर्म को छोडने को तैयार हिंदुओं को उन्होंने ललकार कर कहाँ- कायर कहीं के, मौत के डर से अपने प्यारे धर्म को छोडने में क्या तुमको लज्जा नहीं आती ! भाई मतिराम की बात सुनकर मतांध मुसलमान हंस पड़े और उससे कहाँ की कौन हैं तू, जो मौत से नहीं डरता?
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इस्लामी मतांध तलवार के सामने सर झुकाए हुए , मृत्यु के भय से अपने पूर्वजों के धर्म को छोडने को तैयार हिंदुओं को उन्होंने ललकार कर कहाँ- कायर कहीं के, मौत के डर से अपने प्यारे धर्म को छोडने में क्या तुमको लज्जा नहीं आती ! भाई मतिराम की बात सुनकर मतांध मुसलमान हंस पड़े और उससे कहाँ की कौन हैं तू, जो मौत से नहीं डरता?
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इस्लामी मतांध तलवार के सामने सर झुकाए हुए , मृत्यु के भय से अपने पूर्वजों के धर्म को छोडने को तैयार हिंदुओं को उन्होंने ललकार कर कहा- कायर कहीं के, मौत के डर से अपने प्यारे धर्म को छोडने में क्या तुमको लज्जा नहीं आती ! भाई मतिराम की बात सुनकर मतांध मुसलमान हंस पड़े और उससे कहाँ की कौन हैं तू, जो मौत से नहीं डरता?
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इस्लामी मतांध तलवार के सामने सर झुकाए हुए , मृत्यु के भय से अपने पूर्वजों के धर्म को छोडने को तैयार हिंदुओं को उन्होंने ललकार कर कहा- कायर कहीं के, मौत के डर से अपने प्यारे धर्म को छोडने में क्या तुमको लज्जा नहीं आती ! भाई मतिराम की बात सुनकर मतांध मुसलमान हंस पड़े और उससे कहाँ की कौन हैं तू, जो मौत से नहीं डरता?
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सामाजिक अस्पृश्यता , जो भूतकाल में प्रचलित थी समूल नष्ट की जाएगी तथा जो बंधु पीड़ित थे उन्हें समान श्रेणी, आदर एवं प्रेम से प्रतिष्ठा होगी।” कुछ मतांध लोग संघ और गुरुजी पर मनुवादी, ब्राह्मणवादी होने का आरोप मंढते रहते हैं, कहना कठिन है कि इसमें कितनी धूर्तता शामिल है और कितना भोलापन, किन्तु यह समूचा संदर्भ उनकी मिची हुई ऑंखों को खोल देने के लिए पर्याप्त है, उनके कुतर्कों का सटीक उत्तर तो है ही।