उदाहरण वाक्य | 41. | प्रस्तुत सूत्र द्वारा मूर्धा - प्रदेश ( हृदय ) में संयम का निर्देश किया गया है ॥ 34 ॥
| | 42. | ' ण' का उच्चारण मूर्धा के सबसे ऊपरी हिस्से में होता है, ये मूर्धा का मूल भाग माना गया है।
| | 43. | ' ण' का उच्चारण मूर्धा के सबसे ऊपरी हिस्से में होता है, ये मूर्धा का मूल भाग माना गया है।
| | 44. | अर्थात् प्राण , वायु के मूर्धा , वक्ष प्रदेश , कण्ठ , जिह्वा , मुख , नासिका स्थान है ।
| | 45. | या मंगल के प्रचलित मन्त्र “ ॐ अग्नि मूर्धा दिवः ककुत्पतिः - ” का पाठ कर इतिश्री मान लेते हैं।
| | 46. | मुँह के भीतर ट , ठ, ड, ढ बोलने पर जीभ जिस स्थान पर लगती है वह स्थान मूर्धा कहलाता है।
| | 47. | ट , ठ, ड, ढ को बोलने पर मुँह में जिस स्थान पर जीभ लगती है, वह स्थान मूर्धा होता है।
| | 48. | श को तालु में , ष को मूर्धा में और स को दन्त में जीभ लगा कर बोला जाता है।
| | 49. | तालु मूर्धा को कामधेनु की उपमा दी गई है और जिह्वाग्र भाग से उसे सहलाना पयपान कहा गया है ।।
| | 50. | ट , ठ, ड, ढ , ण- मूर्धन्य कहे गए, क्योंकि इनका उच्चारण जीभ के मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है।
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