तिरूअनन्तपुरम में जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि गया है कि मृदंगम वादक उमायलपुरम सिवरामन की अध्यक्षता में गठित ज्यूरी ने उन्हें इस पुरस्कार के लिए चुना है।
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ब्रिटेन में सरकारी वित्त पोषण से सोमवार को शुरू हुए पहले हिंदू स्कूल में विद्यार्थियों को भगवद्गीता , योग और हार्मोनियम, मृदंगम तथा तबला आदि बजाने की शिक्षा दी जाएगी।
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गायकों को संगत देने के लिए मृदंगम , वायोलिन , घटम ( मटका ) , ढपली तथा तानपुरा का प्रयोग साधारणतया होता है परन्तु हारमोनियम कर्णाटक संगीत में निषिद्ध है .
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प्रख्यात गायिका गिरिजा देवी , प्रसिद्ध नृत्य गुरू नटराज रामकृष्ण, ध्रुपद उस्ताद रहीम फहीमुद्दीन डागर एवं मृदंगम विद्वान टी.के. मूर्ति को अकादेमी के सर्वोच्च सम्मान अकादेमी रत्न सदस्यता से अलंकृत किया गया।
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महोत्सव के दौरान इस नृत्य की प्रस्तुति में जो संगीत शैली प्रयोग में लाई जाएगी उसका नाम है सोपान संगीतम , जिसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों मृदंगम , मधालम , इडक्का और वीणा पर बजाया जाएगा।
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इसी प्रकार संस्कृति भवन में तीन जनवरी को ही हार्मोनियम प्रात : 9.30 बजे , तबला प्रात : 11 बजे , मृदंगम दोपहर 12.30 बजे , सितार दोपहर एक बजे , गिटार एवं वीणा दोपहर तीन बजे तथा बांसुरी वादन की प्रस्तुति का आयोजन सायं पांच बजे किया जायेगा।
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इसी प्रकार संस्कृति भवन में तीन जनवरी को ही हार्मोनियम प्रात : 9.30 बजे , तबला प्रात : 11 बजे , मृदंगम दोपहर 12.30 बजे , सितार दोपहर एक बजे , गिटार एवं वीणा दोपहर तीन बजे तथा बांसुरी वादन की प्रस्तुति का आयोजन सायं पांच बजे किया जायेगा।
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ट्रैक की शुरुआत में इसके विषय के बारे में बताने के कुछ ही मिनट के भीतर पूरी सांगीतिक व्यवस्था पंडितजी की ट्रेडमार्क एकरेखीय वाद्य ध्वनियों की ओर मुड़ जाती है जिसमें सरोद , सितार , तबला , मृदंगम और तमाम अन्य वाद्य यंत्रों का भरपूर इस्तेमाल जुगलबंदी की शैली में किया जाता है जबकि पश्चिमी संगीत की हार्मनी और काउंटर प्वाइंट पूरी तरह गायब हैं।
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ट्रैक की शुरुआत में इसके विषय के बारे में बताने के कुछ ही मिनट के भीतर पूरी सांगीतिक व्यवस्था पंडितजी की ट्रेडमार्क एकरेखीय वाद्य ध्वनियों की ओर मुड़ जाती है जिसमें सरोद , सितार , तबला , मृदंगम और तमाम अन्य वाद्य यंत्रों का भरपूर इस्तेमाल जुगलबंदी की शैली में किया जाता है जबकि पश्चिमी संगीत की हार्मनी और काउंटर प्वाइंट पूरी तरह गायब हैं।
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संगोष्ठी के पहले दिन गहन चिंतन और विचार मंथन के उपरांत शाम को कासा दे ला इंडिया के सभागार में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया , जिसमें स्पेन के जिप्सी समुदाय के पारंपरिक नृत्य फ़्लेमेंको को उसके भारतीय स्रोत से जोड़ने का प्रयास किया गया तथा साथ ही भरतनाट्यम, कत्थक, हंस वीणा, तबला और मृदंगम एवं फ़्लेमेंको नृत्य और गायन का अन्तर्राष्ट्रीय कलाकारों ने अद्भुत समागम किया।