| 41. | सिद्धांत के अनुसार यह दक्षिणवर्त , वामावर्त और मेसो-टार्टिरिक अम्ल रूपों के समान मिश्रण से प्राप्त होता है।
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| 42. | चौथा टार्टेरिक अम्ल ऐसा हो सकता है जिसमें दक्षिणावdर्त और वामावर्त टार्टेरिक अम्ल की सममात्रा विद्यमान हो।
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| 43. | सिद्धांत के अनुसार यह दक्षिणवर्त , वामावर्त और मेसो-टार्टिरिक अम्ल रूपों के समान मिश्रण से प्राप्त होता है।
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| 44. | सिद्धांत के अनुसार यह दक्षिणवर्त , वामावर्त और मेसो-टार्टिरिक अम्ल रूपों के समान मिश्रण से प्राप्त होता है।
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| 45. | सिद्धांत के अनुसार यह दक्षिणवर्त , वामावर्त और मेसो-टार्टिरिक अम्ल रूपों के समान मिश्रण से प्राप्त होता है।
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| 46. | सिद्धांत के अनुसार यह दक्षिणवर्त , वामावर्त और मेसो-टार्टिरिक अम्ल रूपों के समान मिश्रण से प्राप्त होता है।
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| 47. | पहले दक्षिणावर्त और वामावर्त प्रतिबिंब रूपों को क्रमश : डैक्ट्रो (d) और लीवो (l) उपसर्गों से निर्देशित किया जाता था।
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| 48. | इसका मुंह बाईंं ओर खुला होता है , इसलिए इसे पं . सुनील जोशी जुन्नरकर वामावर्त शंख कहते हैं।
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| 49. | निष्क्रिय पदार्थ प्राप्त होता है , जैसे दक्षिणावर्त और वामावर्त दोनों लैक्टिक अम्ल अवकृत होकर एक ही प्रोपिऑनिक अम्ल देते हैं।
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| 50. | निष्क्रिय पदार्थ प्राप्त होता है , जैसे दक्षिणावर्त और वामावर्त दोनों लैक्टिक अम्ल अवकृत होकर एक ही प्रोपिऑनिक अम्ल देते हैं।
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