इस पथ का उद्देश्य नहीं है श्रांति भवन में टिक रहना किन्तु पहुंचना उस सीमा पर जिसके आगे राह नहीं अथवा उस आनन्द भूमि में जिसकी सीमा कहीं नहीं।
42.
या प्रवाल-से अधर दीप्त , जिनका चुम्बन लेते ही धुल जाती है श्रांति , प्राण के पाटल खिल पड्ते हैं और उमड़ आसुरी शक्ति फिर तन में छा जाती है
43.
मन : श्रांति के स्थायी उपचार के लिये उसके उत्तेजक कारणों का पता लगाना अत्यंत आवश्यक है , जैसे मानसिक , चिंता , विषाक्तता ( toxaemia ) , अथवा आघात।
44.
मन : श्रांति के स्थायी उपचार के लिये उसके उत्तेजक कारणों का पता लगाना अत्यंत आवश्यक है , जैसे मानसिक , चिंता , विषाक्तता ( toxaemia ) , अथवा आघात।
45.
श्रांति इस बात का संकेत है कि शरीर की कोशिकाओं को आवश्यक ऊर्जा का सतत प्रवाह देने के लिए , उन्हें भोजन में पर्याप्त क्रियाशील परमाणु प्राप्त नहीं हो रहे हैं।
46.
आन्त्र परजीवी भी श्रांति की ओर अग्रसर कर सकते हैं , क्योंकि वे शरीर को अच्छे पोषण से वंचित कर देते हैं तथा अपने आपको पौष्टिक लाल रक्त से भर लेते हैं।
47.
ये बाँहें , विधु के प्रकाश की दो नवीन किरणॉ सी ; और वक्ष के कुसुम-पुंज , सुरभित विश्राम-भवन ये , जहाँ मृत्यु के पथिक ठहर कर श्रांति दूर करते हैं .
48.
श्रांति के अवगुंठन के पीछे चिर प्रतीक्षपन्न निस्तब्ध निरखता उस मुकुलित पुष्प को और परखता उस पत्र का निष्करुण निपात जिसमें नव किसलय के स्मिति-हास की परिणति तथा रोदन के आवृत्त प्रलाप .
49.
लेकर तन-मन की श्रांति पड़ी होगी जब शय्या पर चंचल , किस मर्म-वेदना से क्रंदन करता होगा प्रति रोम विकल आँखों के अम्बर से धीरे-से ओस ढुलक जाती होगी! जब नींद नहीं आती होगी!
50.
या प्रवाल-से अधर दीप्त , जिनका चुम्बन लेते ही धुल जाती है श्रांति, प्राण के पाटल खिल पड्ते हैं और उमड़ आसुरी शक्ति फिर तन में छा जाती है किंतु, हाय री, लहर वह्नि की, जिसे रक्त कहते हैं;