संगीत के अध्यात्मिक असर को सूफ़ीवाद में स्वीकार किया गया और भारतीय उपमहाद्वीप में क़व्वाली को लोकप्रिय बनाने का श्रेय जाता है ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को .
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सल्जूक़ दरबार में ही सबसे बड़े सूफ़ी कवि रूमी ( जन्म 1215) को आश्रय मिला और उस दौरान लिखी शाइरी को सूफ़ीवाद की श्रेष्ठ रचना माना जाता है ।
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बहुत हुआ तो किसी ने तसव्वुफ़ ( सूफ़ीवाद ) का सहारा लेकर संसार की असारता एवं नश्वरता पर दो-चार आँसू बहा दिए और निराशावाद के बिल में दुबक गया।
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रुदाकी , फिरदौसी, उमर खय्याम, नासिर-ए-खुसरो, रुमी, इराकी, सादी, हफ़ीज़ आदि उस काल के प्रसिद्ध कवि हुए जिसमें कईयों को सूफ़ीवाद के प्रेणेता के रूप में जाता जाता है ।
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बहुत हुआ तो किसी ने तसव्वुफ़ ( सूफ़ीवाद ) का सहारा लेकर संसार की असारता एवं नश्वरता पर दो-चार आँसू बहा दिए और निराशावाद के बिल में दुबक गया।
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उनके सारे रचनाकर्म में सूफ़ीवाद की गहरी छाया होती थी और वे उस निराकार परमशक्ति को अपना मेहबूब मानते थे जिस तक पहुंचना ही सूफ़ीवाद का मुख्य उद्देश्य माना गया है .
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उनके सारे रचनाकर्म में सूफ़ीवाद की गहरी छाया होती थी और वे उस निराकार परमशक्ति को अपना मेहबूब मानते थे जिस तक पहुंचना ही सूफ़ीवाद का मुख्य उद्देश्य माना गया है .
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विशेषज्ञों ने सूफ़ीवाद को परिभाषित करते हुए उसे एक ऐसा विज्ञान बताया है जिसका उद्देश्य हृदय का परिष्कार करते हुए उसे ईश्वर के अलावा हर दूसरी चीज़ से विरत करना होता है .
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भारत में इसके पहुंचने की सही सही समयावधि के बारे में आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में ग़रीबनवाज़ ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती बाक़ायदा सूफ़ीवाद के प्रचार-प्रसार में रत थे .
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रुदाकी , फिरदौसी , उमर खय्याम , नासिर-ए-खुसरो, रुमी , इराकी , सादी , हफ़ीज़ आदि उस काल के प्रसिद्ध कवि हुए जिसमें कईयों को सूफ़ीवाद के प्रेणेता के रूप में जाता जाता है ।