एक घर : घोंसले की भांति औंधा तैरता हुआ एक बैल : चाम के बोरे की तरह फूल कर पेड़ की जड़ों से फंसा हुआ एक लहंगा : मोमाक् खी के छत् ते-सा फैला हुआ आकाश के बेलगाम बादलों की दौड़ हिनहिनाहट और लगातार झरता हुआ जहर
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जैसे लगाम मुखबद्ध बोझ से लदा हुआ , हॉंकने वाले के चाबुक से पीडित , दौड़ते-दौड़ते बेदम तुरंग हिनहिनाने की आवाज सुनकर कनौतियॉं खड़ी कर लेता है और परिस्थिति को भूलकर एक दबी हुई हिनहिनाहट से उसका जवाब देता है , कुछ वही दशा प् यारी की हुई।
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जैसे लगाम से मुखबद्ध , बोझ से लदा हुआ , हांकने वाले के चाबुक से पीड़ित , दौड़ते-दौड़ते बेदम तुरंग हिनहिनाने की आवाज सुनकर कनौतियां खड़ी कर लेता है और परिस्थिति को भूलकर एक दबी हुई हिनहिनाहट से उसका जवाब देता है , कुछ वही दशा प्यारी की हु ई.
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इसलिए इस कुलपति को अपने तमाम वेगवान उल्लू के पट्ठों पर कोई संदेह नहीं था , खासकर उस ताजादम घोड़े की हिनहिनाहट वाले रौबदार शख्स पर तो बिल्कुल नहीं , जो साहित्य और संस्कृति के बायें पक्ष से सरपट दौड़ता हुआ आया था , और आजकल इस कुलपति का दाहिना हाथ था।
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भाट और चारण भी जब युद्धस्थल में उमंग , जोश से सरोबार कविता-गान करते थे तो वीर योद्धाओं का उत्साह दोगुना हो जाता था तो युद्धक्षेत्र कहीं हाथी की चिंघाड़, तो कहीं घोड़ों की हिनहिनाहट तो कहीं शत्रु की चीत्कार से भर उठता था यह गायन कला की परिणति ही तो है ।
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भाट और चारण भी जब युद्धस्थल में उमंग , जोश से सरोबार कविता-गान करते थे तो वीर योद्धाओं का उत्साह दोगुना हो जाता था तो युद्धक्षेत्र कहीं हाथी की चिंघाड़, तो कहीं घोड़ों की हिनहिनाहट तो कहीं शत्रु की चीत्कार से भर उठता था यह गायन कला की परिणति ही तो है ।
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जैसे ही वह वीर ( पाबूजी ) विवाह मंडप में अपने विवाह हेतु बैठा था | उसी समय उन्होंने घोड़ी की हिनहिनाहट सुनी ( हेलो ) हिनहिनाहट का तात्पर्य समझकर विपत्ति के विषय में वधु ( कंवरी ) को बताया व गठ्जोड़े की गाँठ को तलवार से काटकर युद्ध के लिए घोड़ी पर जा चढ़ा |
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जैसे ही वह वीर ( पाबूजी ) विवाह मंडप में अपने विवाह हेतु बैठा था | उसी समय उन्होंने घोड़ी की हिनहिनाहट सुनी ( हेलो ) हिनहिनाहट का तात्पर्य समझकर विपत्ति के विषय में वधु ( कंवरी ) को बताया व गठ्जोड़े की गाँठ को तलवार से काटकर युद्ध के लिए घोड़ी पर जा चढ़ा |
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भाट और चारण भी जब युद्धस् थल में उमंग , जोश से सरोबार कविता-गान करते थे तो वीर योद्धाओं का उत् साह दोगुना हो जाता था तो युद्धक्षेत्र कहीं हाथी की चिंघाड़ , तो कहीं घोड़ों की हिनहिनाहट तो कहीं शत्रु की चीत् कार से भर उठता था यह गायन कला की परिणति ही तो है ।
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ऐ अहनफ़ ! गेया के मैं उस “ ाख़्स को देख रहा हूँ जो एक ऐसा लष्कर लेकर आया है जिसमें न गर्द व ग़ुबार है और न “ ाोर वग़ोग़ा है , न लजामों की खड़खड़ाहट है और न घोड़ों की हिनहिनाहट , यह ज़मीन को उसी तरह रोन्द रहे हैं जिस तरह “ ाुर्तमुर्ग़ के पैर।