| 1. | पटह तूर्य भेरी तुरही थे , मुरज शंख मांदर मृदंग थे,
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| 2. | पटह तूर्य भेरी तुरही थे , मुरज शंख मांदर मृदंग थे,
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| 3. | मुरज की थापें अनेक गुणियों को मन्त्रमुग्ध कर देती थीं।
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| 4. | मृदंग-- सुधाकलश में भगवान शंकर को मृदंग या मुरज का अविष्कारक मानाहै .
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| 5. | पटह तूर्य भेरी तुरही थे , मुरज शंख मांदर मृदंग थे ,
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| 6. | पटह तूर्य भेरी तुरही थे , मुरज शंख मांदर मृदंग थे ,
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| 7. | मुरज मृदंग का ही पर्याय है . भरत ने मृदंगके तीन रूप बताये है-- हरीतकी, यवाकृति तथा गोपुच्छा.
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| 8. | एक अन्य श्लोक में कवि ने कंदराओं से प्रतिध्वनित मेघ-गर्जना की तुलना मुरज ध्वनि से की है।
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| 9. | एक अन्य श्लोक में कवि ने कंदराओं से प्रतिध्वनित मेघ-गर्जना की तुलना मुरज ध्वनि से की है।
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| 10. | मंदिरों में ईश्वर आराधना के समय शंख , घड़ियाल, मुरज, मृदंग, ढ़ोल, घण्टा, वीणा आदि बजाने की प्राचीन परम्परा रही है जोआद्यान्त चली आ रही है.
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