हमारा इरादा हर कम से कम हर पखवाड़े एक अंक निकालना का रहा है पर व्यस्तता के कारण यह संभव न हो सका।
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कैसे खुद और पाठकों को यह समझाया जाए कि बॉलीवुड पर एक पूरा अंक निकालना तहलका जैसी एक खांटी समाचार पत्रिका के लिए जरूरी न भी हो तो कोई अजीब बात भी नहीं है.
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कैसे खुद और पाठकों को यह समझाया जाए कि बॉलीवुड पर एक पूरा अंक निकालना तहलका जैसी एक खांटी समाचार पत्रिका के लिए जरूरी न भी हो तो कोई अजीब बात भी नहीं है.
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एक तरफ साहित्य को जहाँ माल के रूप में बेचने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, वहां पर मु 0 गाजी द्वारा प्रतिबद्धता के धरातल पर ऐसे खूबसूरत अंक निकालना अचरज ही पैदा करता है।
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एक तो प्रेस का काम, ऊपर से घर में भी कुछ निर्माण का काम पिछले दो माह से चल रहा है, इसी के साथ हमें खेलगढ़ का मार्च का अंक निकालना है तो व्यस्तता बढ़ गई है।
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एक तो घर का काम चल रहा है, ऊपर से सितम यह है कि हमें अपने खेलगढ़ का मार्च का अंक निकालना है जिसका मैटर तैयार करने के साथ ही पत्रिका को भी संवारने का काम चल रहा है।
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कैसे खुद और पाठकों को यह समझाया जाए कि बॉलीवुड पर एक पूरा अंक निकालना तहलका जैसी एक खांटी समाचार पत्रिका के लिए जरूरी न भी हो तो कोई अजीब बात भी नहीं है. </p>< p>मगर शायद ऐसा करना उतना मुश्किल भी नहीं.
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यदि देश, समाज और जनता के अपनी नियति बदलने के लिये किये गये ऐतिहासिक संघर्षों के विषय में किसी साहित्यिक पत्रिाका का अंक निकालना गैर जरूरी है तो उनसे पूछा जा सकता है कि आखिर साहित्य का प्रयोजन क्या है और उसके लिये क्या जरूरी है।
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नौकरी, लेखन, यात्राएं, यारबाशी और आजकल नया शिगूफा, मुआ फेसबुक इन सब के बीच समय निकाल कर हरिशंकर परसाई पर पर इतना सार्थक, बहुमूल्य, गंभीर और चिंतन परक अंक निकालना हँसी खेल नहीं है और मैं ये अंक पढ़ते समय ये देख कर और भी हैरान हो गया कि जनाब परसाई जी पर इसी तरह का एक और अंक निकालने की मुहिम में जुट गये हैं।