| 11. | पुरुरवा महाशून्य के अंतर्गृह में, उस अद्वैत-भवन में जहाँ पहुंच दिक्काल एक हैं, कोई भेद नहीं है.
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| 12. | क्योंकि और सब ज्ञान से तो तुम जान सकते हो बाहर-बाहर से; प्रेम में ही तुम अंतर्गृह में प्रवेश करते हो।
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| 13. | क्योंकि और सब ज्ञान से तो तुम जान सकते हो बाहर-बाहर से; प्रेम में ही तुम अंतर्गृह में प्रवेश करते हो।
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| 14. | और एक बार जब तुम एक व्यक्ति के अंतर्गृह में प्रवेश कर जाते हो तो तुम्हारे हाथ में कला आ जाती है;
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| 15. | और एक बार जब तुम एक व्यक्ति के अंतर्गृह में प्रवेश कर जाते हो तो तुम्हारे हाथ में कला आ जाती है;
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