अनुचिंतन (अपनी मानसिक अवस्थाओं तथा गुणों के बारे में सोचना तथा उनसे गुजरना) को भी अंतर्निरीक्षण का समानार्थी नहीं समझना चाहिए, क्योंकि अनुचिंतन भी व्यवहित होता है और उसमें वाचिक विवरन का संसाधन, अपने कार्यों का विश्लेषण, संबंधित निष्कर्ष निकालना, अपने बारे में अपने मत की दूसरों के मत से तुलना, आदि शामिल रहते हैं।