यदि समस्त तत्वों की अंतर्निहित ऊर्जा को शून्य मान लिया जाए, तो उपयुक्त विवेचन से स्पष्ट है कि यौगिकों की अंतर्रिहित ऊर्जा उनकी उत्पादन उष्मा के बराबर होगी;
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' यदि इस तथ्य को स्वीकार कर लिया जाए तो स्पष्ट है कि पिरामिड का निर्माण उच्च स्तर की प्राप्ति हेतु तथा शरीर में, पदार्थ में अंतर्निहित ऊर्जा को जाग्रत करने हेतु ही हुआ है।
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जैसे ही वह अपनी अंतर्निहित ऊर्जा की पूर्ण अवस्था प्राप्त कर लेता है, उसका सारा आवेग समाप्त हो जाता है, और शांत, संतुलित, स्थिर होकर स्थाइत्व की चिर-अवस्था में स्थापित हो जाता है।
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इस सत्य के विपरीत जब हम विभेद में जीते है, अपने-पराये की अतिरेक भावना व आग्रह में रहते हैं, तो हमारी अंतर्निहित ऊर्जा अपूर्ण हो जाती है, व इस प्रकार इस अपूर्णता की स्थिति में हमारा मन व चित्तवृत्तियाँ अनेक प्रकार के आवेश, उद्वेग, चिंता-विकलता के आरोह-अवरोह में गिरते-उठते रहते हैं।
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भौतिक व रसायन विज्ञान के कोर्स में पढ़ा था कि चाहे परमाणु हो अथवा कि कोई पिंड, उनकी शांत व संतुलित अवस्था उसकी अंतर्निहित ऊर्जा की पूर्णता की अवस्था में ही होती है, जब तक वह पूर्णता की अवस्था प्राप्त कर नहीं लेता, उसकी अस्थिरता व व्यग्रता बनी रहती है, व वह अनेक क्रियाओं, प्रतिक्रियाओं, गति, टकराव, खंडन, विखंडन, संघर्षण, आवेषण, संग्रह, विग्रह जैसी अनेकों भौतिक व रासायनिक क्रियाओं व प्रतिक्रियाओं से गुजरता रहता है।