रात अपना गाढ़ा अंधेरापन नहीं खोती थी ; अचेतन का रूपान्तरण होता था पर वह अचेतन बना रहता था ; तर्क कभी खुद को चीजों पर नहीं लादता था ; तो भी समूचा अजाना द्वीपसमूह रोशन हो कर सामने आता था बिना किसी परछाई या अपरिभाषित के जैसे कि वह दिन की रचना हो।
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‘ पत्थरगली ' के माध्यम से उनकी जो भी कहानियां उपलब्ध हो सकी हैं उनमें नारी अस्मिता, उसके जीवन बिम्ब, रिश्तों की बेबसी, संबंधों का स्थायित्व, स्वार्थपरिता, आत्मीयता का आभाव, बाज़ार के से उतार-चढ़ाव की ज़िन्दगी, उदासियों का अंधेरापन, और कहीं कोई रोशनी की लकीर-सी निर्बाध बहती हंसी...
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चलना ही समय है और ठहरने शून्यता है, अंधेरापन है मरण है समय ही हमें सिखाता है सृष्टि-कर्म के नए-नए अन्वेषण और यह भी कि मनुष्य जब भी अभिलाषाओं के सेतु निर्माम करताहै तो उसकी मह्तवाकांक्षा का आधार समय के बीच ही ढलता है समय अहर्निश अबाध गति चलता है और हम उसके बहुत पीछे छूट जाते हैं।
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थकान और अस्वस्थता महसूस हो रही थी. पूरे शरीर में अब दोपहर तीन बजे तक उठ जाते हैं:-) पर कुछ अंधेरापन है! वैसे रामजी से मिलने को लेकर कोई प्रगति नहीं हुई है पर दिनचर्या में प्रगति को हम उसी दिशा में बढ़ा एक दृढ पग मान रहे हैं परन्तु हनुमानजी...!!उनका कोई पता ही नहीं चल रहा है!सर्वत्र अन्धकार ही दिख रहा है.-दिन: बुधवार, 14-7-10.स्थान: हमारा घर.समय: रात्रि 03:40 बजे.व्यक्ति: एक हम बस और दूसरा कोई नहीं.