हिंदी फिल्मों में ऐसी फिल्में कम बनती हैं, जहां थियेटर या नाटक से जुड़े व्यक्ति की पीड़ा या उसके अंर्तद्वंद्व की कहानी प्रस्तुत हो सके. पुलिस का आम लोगों के प्रति नजरिया.
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मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि आपके अंदर अंर्तद्वंद्व तो ज़रूर होता, कामना तो ज़रूर जागती एक बार, लेकिन आप ऐसा कर ही नहीं सकते थे, क्योंकि आप प्रदीप चौबे हैं, क्योंकि आप कविताएं लिखते हंै।