| 11. | अक्षि उपनिषद कृष्ण यजुर्वेदीय शाखा के अन्तर्गत एक उपनिषद है।
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| 12. | संस्कृत का अक्षि ही अपभ्रंश में आक्खि-आखि होते हुए हिन्दी में आंख हुआ।
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| 13. | संस्कृत का अक्षि ही अपभ्रंश में आक्खि-आखि होते हुए हिन्दी में आंख हुआ।
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| 14. | कैसे अद्भुत रहे होंगे वे पल जो इस अमरकृति के अक्षि साक्षी बने।
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| 15. | सह में सहित का भाव है और अक्षि अर्थात आंख, नेत्र, नयन।
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| 16. | अट्टालिकाओं के साये में जब हादसे होते हैं तो कोई अक्षि साक्षी नहीं होता।
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| 17. | अक्षि को व्याप्त होना, संचित होने के अर्थ में भी देखा जा सकता है.
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| 18. | और अक्षि शूल मे इसकी मुल के स्वरस को डालने से चम्तकारी लाभ मिलता है ।
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| 19. | पर पीड़ा अपनी हो पाये परमारथकर जग सरसाये अक्षि नीर मोती बन जाए तो ये धरा स्वर्ग कहलाये।
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| 20. | अक्षि उपनिषद ने सर्वप्रथम भगवान सूर्य के उज्जवल स्वरूप तथा उनकी महिमा का विस्तार पूर्वक वर्णन मिलता है.
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