स्वाधीनता संग्राम के बलिदानी सेनानी स्वर्ग से हमें पूछते हैं कि हमारा कारवाँ एक ही मंजिल पर पड़ाव डालकर क्यों रुक गया? आगे का पड़ाव सामाजिक असभ्यता के उन्मूलन का था, अगला मोर्चा वहाँ जमना था पर सैनिकों ने हथियार खोलकर क्यों रख दिए? युग की आत्मा इन प्रश्नों का उत्तर चाहती है।
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अरे ज्योति जी ये क्या कह दिया ……… ये यहाँ के पुरुषों को हजम नही होगा ……… बचकर रहियेगा कहीं अगला मोर्चा आपके यहाँ ही ना लग जाये ……… मेरे यहाँ तो लग चुका है ………… बहुत बडी बात कह दी आपने वो भी खुल्लम खुल्ला ……… बच के रहियेगा ………… जल्द ही आपके विरुद्ध अभियान चालू ना हो जाये ………… आपने तो उनके अस्तित्व पर ही सवाल लगा दिया है मगर सटीक सवाल किया है और आपके हौसले की दाद देती हूँ।