मन को बहला रही हूँ कुछ अगला-पिछला याद करके, आपने अच्छा लिखा, मन को छू जाने वाला..........
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और कोई चाहे कुछ भी कह ले लेकिन अगला-पिछला जन्म कुछ नहीं होता है, जो कुछ भी होता है, यहीं होता है।
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अब तक तो वो सहेलियों की बाड़ी का बही खाता निकाल कर इसका अगला-पिछला इतिहास निकाल चुकी होंगी! मुझे भी उत्सुकता है इसके बारे में और ज्यादा जानने की!
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मैं ब्लॉग की दुनिया में कई-कई महीनों के अंतराल के बाद ही विचरण करती हूं और जब भी आती हूं अपने बहुत ही चुनिंदा ब्लॉग्स का अगला-पिछला बकाया सब पढ़ जाती हूं।
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मैं ब्लॉग की दुनिया में कई-कई महीनों के अंतराल के बाद ही विचरण करती हूं और जब भी आती हूं अपने बहुत ही चुनिंदा ब्लॉग्स का अगला-पिछला बकाया सब पढ़ जाती हूं।
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बिल्कुल ठीक फरमाया, लेकिन यह तो मानना ही पड़ेगा कि अगर व्यक्ति के अनुभव का दायरा संकुचित हो और उसे घटना को अगला-पिछला और उसके प्रभाव का क्षेत्र नहीं पता होगा तो कैसे वह धाराप्रवाह बोल सकता है?
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उनकी भेदभरी निग़ाह अभी भी आप पर ही टिकी हुई है, “ पूरा कि सिर्फ़ अगला-पिछला? ” पूरा नवरात्रि स्पेशल बुक करवाये हो कि सिर्फ़ इंज़न औ ' गार्ड के डिब्बे से काम चलाय रहे हो? खैर छोड़ो, अब शुरु होता है...
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एक भेदभरी निग़ाह आप पर टिकी हुई है, “ पूरा कि सिर्फ़ अगला-पिछला? ” यह कोई पब्लिक प्रासेक्यूटर नहीं, नारद मुनि का रिपोर्टर है, नारायण नारायण, पूरा नवरात्रि स्पेशल बुक करवाये हो कि सिर्फ़ इंज़न औ' गार्ड के डिब्बे से काम चलाय रहे हो? खैर छोड़ो, अब शुरु होता है...
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और वो आंसू भरी नज़र से पापाजी की मम्मी को देती हुई अंतिम बिदाई!! याद आते ही..........................शायद अभी-अभी इस हालत से गुजरी हूँ,इसलिए लिखने से कतरा रही हूँ...शायद कभी सम्भव हो सके तो.......मन को बहला रही हूँ कुछ अगला-पिछला याद करके,आपने अच्छा लिखा,मन को छू जाने वाला.......... सच में, मन बार-बार यही कहता है उनसे जो अब नहीं हैं मेरे साथ....
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* इस अकुलीन कर्ण से, कृष्णा कैसे कुछ चाहेगी, इतना द्वेष प्रतारण का कुछ तो चुक जाये बदला और उसी आवेशित क्षण में क्षुब्ध हृदय पगलाया आज अभी चुकता कर लूँ सारा अगला-पिछला. * और दूसरी बार युद्ध में किसने नीति निभाई, धर्म राज ने मिथ्या को सच का पर्याय बनाया वासुदेव ने बड़ा कुशल नीतिज्ञ रूप धारण कर, कितने नाटक रचे उन्हीं के हित में खेल रचाया.