मामूली ईंट तथा प्लस्तर अधिक गरमी अथवा ताप से चिटक जाते हैं, अतः अँगीठियों इत्यादि की रचना में भी, जहाँ आग जलाई जाती है, अग्निसह ईंट अथवा अग्निसह मिट्टी के लेप (पलस्तर) का प्रयोग किया जाता है।
12.
अग्निसह मिट्टी अँगीठी, भट्ठी तथा चिमनी इत्यादि के भीतर, जहाँ आग की गरमी अत्यधिक होने से साधारण मिट्टी की ईंटें अथवा पलस्तर के चटक जाने की आशंका रहती है, अग्निसह ईंट अथवा लेप के रूप में काम में लाई जाती है।
13.
अच्छी अग्निसह ईंट करीब 2, 500 से 3,000 डिगरी सेंटीग्रेड तक की गर्मी सह सकती है, अतः कारखानों में बड़ी-बड़ी भट्ठियों की भीतरी सतह को गर्मी के कारण गलने से बचाने के लिए भट्ठी के भीतर इसकी चुनाई कर दी जाती है।
14.
अच्छी अग्निसह ईंट करीब 2, 500 से 3,000 डिगरी सेंटीग्रेड तक की गर्मी सह सकती है, अतः कारखानों में बड़ी-बड़ी भट्ठियों की भीतरी सतह को गर्मी के कारण गलने से बचाने के लिए भट्ठी के भीतर इसकी चुनाई कर दी जाती है।
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अग्निसह मिट्टी अँगीठी, भट्ठी तथा चिमनी इत्यादि के भीतर, जहाँ आग की गरमी अत्यधिक होने से साधारण मिट्टी की ईंटें अथवा पलस्तर के चटक जाने की आशंका रहती है, अग्निसह ईंट अथवा लेप के रूप में काम में लाई जाती है।
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अच्छी अग्निसह ईंट करीब 2, 500 से 3,000 डिगरी सेंटीग्रेड तक की गर्मी सह सकती है, अतः कारखानों में बड़ी-बड़ी भट्ठियों की भीतरी सतह को गर्मी के कारण गलने से बचाने के लिए भट्ठी के भीतर इसकी चुनाई कर दी जाती है।
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मामूली ईंट तथा प्लस्तर अधिक गरमी अथवा ताप से चिटक जाते हैं, अतः अँगीठियों इत्यादि की रचना में भी, जहाँ आग जलाई जाती है, अग्निसह ईंट अथवा अग्निसह मिट्टी के लेप (पलस्तर) का प्रयोग किया जाता है।