| 11. | तऊ न मेरे अघ अवगुन गनिहैं / तुलसीदास
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| 12. | चित्त चिंतन करत जग अघ हरत तारन तरन।
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| 13. | जातिहीन अघ जन्म महि मुक्त कीन्हि असि नारि।
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| 14. | जे अघ मातु, पिता सुत मारे ।
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| 15. | सत्यासक्त दयाल द्विज प्रिय अघ हर सुख कन्द।
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| 16. | कहहु कवन अघ परम कराला॥ 3 ॥
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| 17. | होउ नाथ अघ खग गन बधिका ।”
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| 18. | वन उपवन वाटिका तड़ागा, देखतपुरी अखिल अघ भागा।
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| 19. | पर निंदा सम अघ न गरीसा॥ 1 1 ॥
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| 20. | मुण्डन की माल तत्काल अघ हर है।
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