देने वाला देता हर पल मौन में ही संवाद घट रहा दोनों ओर से प्रेम बंट रहा, एक नशीली भाव दशा है ज्यों चन्द्र से मेघ छंट रहा! एक अचलता पर्वत जैसी एक धवलता बादल जैसी, कोई मद्धिम राग गूंजता एक सरलता गाँव जैसी!...
12.
मैं विराट् हूँ, अचल हूँ ; किन्तु मेरी महत्ता और अचलता ने ही मुझे इस अमरवल्ली के सूक्ष्म, चंचल तन्तुओं के आगे इतना नि: सहाय बना दिया! किसी दिन वह कृशतनु, पददलिता थी, और आज यह मुझे बाँध कर, घोंट कर, झुका कर, अपनी विजय-कामना पूरी करने की ओर प्रवृत्त हो रही है!
13.
प्रेम-पाश में बँध सकता हूँ, बाँध नहीं सकता ; प्रेम की प्रस्फुटन-चेष्टा समझ सकता हूँ व्यक्त नहीं कर सकता! जब प्रेम-रस में मैं विमुग्ध होकर अपने हृदय के भाव व्यक्त करने की चेष्टा करता हूँ, तब सहसा मुझे अपनी स्थूलता, अचलता का ज्ञान होता है, और मेरी वे चिर-विचारित, चिर-निर्दिष्ट, अदमनीय चेष्टाएँ जड़ हो जाती हैं ; मेरे सम्भ्रम का एकमात्र चिह्न वह पत्तों का कम्पन, मेरी आकुलता की अभिव्यक्ति का एकमात्र साधन उनका कोमल सरसर शब्द ही रह जाता है।